Showing posts with label Rajasthan GK. Show all posts
Showing posts with label Rajasthan GK. Show all posts

Sunday, 30 April 2023

राजस्थान की प्रमुख हवेलियां

IndiaEnotes

राजस्थान की प्रमुख हवेलियां


1. सुराणों की हवेलियां = चुरू जिले मे स्थित है

2. रामविलास गोयनका की हवेली-= चुरू जिले मे स्थित है

3. मंत्रियों की मोटी हवेली = चुरू जिले मे स्थित है

4. बच्छावतों की हवेली = बीकानेर जिले मे स्थित है

5. बिनाणियों की हवेली = सीकर जिले मे स्थित है

6. पंसारियों की हवेली = सीकर जिले मे स्थित है

7. पुरोहित जी की हवेली = जयपुर जिले मे स्थित है

8. रत्नाकर पुण्डरिक भट्ट की हवेली= जयपुर जिले मे स्थित है

9. बडे़ मियां की हवेली = जैसलमेर जिले मे स्थित है

10. नथमल की हवेली = जैसलमेर जिले मे स्थित है

11. पटवों की हवेली= जैसलमेर जिले मे स्थित है

12. सालिम सिंह की हवेली = जैसलमेर (9 खंडों की हवेली) जिले मे स्थित है

13. बागोर हवेली = उदयपुर (इसमें पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना 1986 में हुई।) जिले मे स्थित है

14. मोहन जी की हवेली = उयपुर जिले मे स्थित है

15. पुश्य हवेली = जोधपुर जिले मे स्थित है

16. पच्चीसा हवेली = जोधपुर

17. नाथूराम पोद्दार की हवेली = बिसाऊ (झुनझुनू) जिले मे स्थित है

18. सेठ जयदयाल केडिया की हवेली = बिसाऊ (झुनझुनू)

19. रामनाथ गोयनका की हवेली = मण्डावा (झुनझुनू जिले मे स्थित है

20. सोने -चांदी की हवेली = महनसर (झुनझुनू)जिले मे स्थित है

21. ईसरदास मोदी की हवेली = झुनझुनू जिले मे स्थित है

22. पोद्दार और भगरिया की हवेलियां= नवलगढ़ (झुनझुनू)जिले मे स्थित है

23. भगतों की हवेली = नवलगढ (झुनझुनू) जिले मे स्थित है

24. सुनहरी कोठी = टोंक जिले मे स्थित है

Thursday, 2 February 2023

राजस्थान की हस्तकला (Handicrafts of Rajasthan)

राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प कलाएं

• हाथों के द्वारा कलात्मक व आकर्षक वस्तुएं बनाना हस्तशिल्प कला कहलाती है।
• राजस्थान में हस्तशिल्प कला का सबसे बड़ा केंद्र बोरानाडा जोधपुर में है ।

• राजस्थान औद्योगिक नीति - 1988
• इस नीति में हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया गया ।

1. ब्लॉक प्रिंटिंग :– हाथ से कपड़े पर छपाई ।
✍️ प्रमुख केंद्र :-
• बालोतरा बाड़मेर 
• बाड़मेर 
• सांगानेर जयपुर
• बगरू जयपुर 
• आकोला चित्तौड़गढ़

✍️ कपड़े पर हाथों से परंपरागत तरीके से छपाई करना ब्लॉक प्रिंटिंग छपाई कहलाती है।
✍️ ब्लॉक प्रिंटिंग करने वालों को छीपे कहा जाता है।
 
✍️बाड़मेर में खत्री परिवार के लोग इस कला में दक्ष है ।

✍️ सांगानेर में नामदेव के छीपे प्रसिद्ध है।

अजरक प्रिंट - बालोतरा बाड़मेर 
• नीले एवं लाल रंग का प्रयोग ।

 मलेर प्रिंट - बाड़मेर 
• कत्थई व काले रंग का प्रयोग।

 जाजम प्रिंट - अकोला चित्तौड़गढ़ 
• लाल‌ हरे रंग का प्रयोग ।

दाबू  प्रिंट - आकोला चित्तौड़गढ़ 
• लाल व काले रंग का विशेष प्रयोग।

सांगानेरी प्रिंट - सांगानेर जयपुर 
•प्राकृतिक रंगों का प्रयोग।

कशीदाकारी कला

• धागों से हाथों के द्वारा कपड़े पर कलात्मक एवं आकर्षक डिजाइन बनाना कशीदाकारी कला कहलाती है।
• प्रमुख केंद्र - बाड़मेर , जैसलमेर , जालौर

बंधेज कला 
• मूलत: मुल्तान की कला
• कपड़ों पर रंग चढ़ाने की एक तकनीक बंधेज कला का लाती है।
• बंधेज कला का सर्वप्रथम उल्लेख बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्त नामक ग्रंथ में मिलता है।
• बंधेज कार्य के लिए जोधपुर के तैय्यब खान को पदमश्री पुरस्कार मिला ।
• राजस्थान में बंधेज चढ़ाने का कार्य चड़वा जाति के द्वारा किया जाता है ।
• प्रमुख केंद्र -  जोधपुर, जयपुर, सुजानगढ़ (चूरू), शेखावटी

पोमचा :-  जच्चा स्त्री का वस्त्र
• पोमचा वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है ।
• प्राय: पोमचा पीले रंग का होता है।
• पुत्र के जन्म पर पीले रंग & पुत्री - गुलाबी रंग का पोमचा
 ननिहाल पक्ष द्वारा लाया जाता है।
• हाडोती क्षेत्र में विधवा महिलाएं महिलाएं काले रंग की ओढ़नी ओढ़ती है, जिसे चीड़ का पोमचा कहा जाता है।
• राजस्थान में जयपुर का पोमचा प्रसिद्ध है।
• मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत ग्रंथ में पोमचा का उल्लेख मिलता है ।

लहरिया :- राजस्थान में जयपुर का प्रसिद्ध विवाहित महिलाएं श्रावण मास वह तीज त्योहार के अवसर पर लहरदार ओढ़नी ओढ़ती है, जिसे लहरिया कहा जाता है।

• रंग 3 का लहरिया 
• पचरंगा लहरिया 
• सतरंगी लहरिया 
प्रकार -
 खत, पाटली, जालदार, पलू, नगीना, फोहनीदार, पचलड।


मोठड़ा :- 
• राजस्थान में मोठडा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
• लहरिया की लहरदार धारियां जब एक दूसरे को काटती है तो उसे मोठड़ा कहा जाता है।

चुनरी :-
• बूंदों के आधार पर बनी बंधेज डिजाइन चुनरी कहलाती है 
• जयपुर, जोधपुर, सुजानगढ़ (चूरू), मेड़ता (नागौर)

मूर्तिकला
• राजस्थान में मूर्तिकला का सर्वाधिक कार्य जयपुर में होता है।
 
• लाल रंग की मूर्तियां - अलवर 
• सफेद संगमरमर की मूर्तियां - किशनगढ़ अजमेर 
• काले रंग की मूर्तियां - तलवाड़ा (बांसवाड़ा)

ब्लू पॉटरी 
• यह कला मूलतः ईरान या पर्शिया की है , जो मुगल दरबार होते हुए राजस्थान में सर्वप्रथम आमेर में मिर्जा राजा मानसिंह के काल में आईं।
• चीनी के बर्तनों पर विभिन्न रंगों का प्रयोग करके डिजाइन बनाई जाती है - हरे, नीले, काले, सफेद,

कृपाल सिंह शेखावत - ब्लू पॉटरी कला के जनक 
इन्होंने 25 रंगों का प्रयोग करके एक नई पोटरी विकसित की जिसे कृपाल पोटरी कहा गया।

तारकशी के जेवर - नाथद्वारा राजसमंद 
• चांदी के तारों से जेवर बनाए जाते हैं।

लाख का काम - जयपुर 
• खिलौने, चूड़ियां सजावटी की सामग्री 

हाथी दांत का काम - जयपुर 
• खिलौने चूड़ियां सजावटी की सामग्री 

मृण्मूर्तियां / टेराकोटा पद्धति :- मोलेला गांव राजसमंद 
• मिट्टी से छोटी छोटी मूर्तियां बनाने की कला टेराकोटा पद्धति 

कोफ्तगिरी कला :- जयपुर
• मूलतः यह कला दमरिक की है जो भारत में सर्वप्रथम पंजाब राज्य में आई ।
• फौलाद की वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जडाई को कोफ्तगिरी कला कहा जाता है ।

कुंदन कला :- जयपुर
• किसी भी स्वर्णिम आभूषण में कीमती पत्थर जोड़ने की कला को कुंदन कला कहा जाता है। 
• मूलतः यह कला फारस / ईरान की कला है ।

मीनाकारी कला :- जयपुर
• किसी भी स्वर्ण आभूषण में मीना /नगीना जड़ने की कला को मीनाकारी कला कहा जाता है।
• मूलतः ईरान/ फारस

थेवा कला :- 
• प्रतापगढ़ में कांच पर सोने का काम थेवा कला के नाम से प्रसिद्ध है।
• थेवा कला विश्व में केवल प्रतापगढ़ के सोनी परिवार तक ही सीमित है।
• प्रक्रिया :- तैरना
            ‌‌     वादा 
• जनक - नाथूराम जी सोनी 
• प्रायः हरे शीशे पर सोने की नक्काशी करना थेवा कला का लाती है ।


• कागदी टेराकोटा - अलवर 

• सरसों का इंजन छाप तेल - भरतपुर 
• सरसों का वीर बालक तेल - जयपुर 

• दरी उद्योग - टोंक
• नमदा उद्योग - टोंक 

• टांकला गांव नागौर - यहां की दरिया प्रसिद्ध है।

• रमकडा़ उद्योग - गलियाकोट ( डूंगरपुर )

• पाव रजाई - जयपुर 

• पान मेथी(खुशबूदार) - नागौर 

• बादला - जोधपुर ( जिंक धातु से निर्मित शीतल जल का पत्र )

• मोचड़ी उद्योग - जोधपुर 
• बडू गांव (नागौर) :- यहां की जूतियां प्रसिद्ध है

• राम कड़ा उद्योग - गलियाकोट डूंगरपुर 

• खेल का सामान - हनुमानगढ़ 

• कृषि के उपकरण - गंगानगर (रायसिंहनगर) और नागौर

• रसदार फल - झालावाड़ 

• लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर - बाड़मेर 

• आम के पापड़ - बांसवाड़ा 

• लकड़ी के कवाड़ - बस्सी ( चित्तौड़गढ़ )
• लकड़ी के झूले - जोधपुर 
• लकड़ी के खिलौने - चित्तौड़गढ़, उदयपुर, सवाई माधोपुर
 
• ऊनी कम्बल - गडरारोड (बाड़मेर )

• ब्लैक पॉटरी - कोटा 

• कागज़ी पॉटरी - अलवर

• मटकी - बीकानेर 

• मिरर वर्क - जैसलमेर

• सूंघनी नसवार - ब्यावर (अजमेर) 

• गलीचे उद्योग - बीकानेर & जयपुर 


उस्तां कला :- बीकानेर 
ऊंट की खाल को मुलायम बनाकर कूप्पा कुप्पिया बनाना तथा उस पर सोने की नक्काशी करना, उस्तां कला कहलाती है।

Saturday, 28 January 2023

राजस्थान की मृदा ( Rajasthan Soil )

 राजस्थान की मृदा 


1.उत्पादन क्षमता व गुणों के आधार पर



1. रेतीली मृदा :–
• कार्बनिक पदार्थों व नाइट्रोजन की कमी
• केल्सियम की अधिकता
• कणों का आकार बड़ा
• जलधारण क्षमता कम

2. भूरी रेतीली मृदा :-
• नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी
• फाॅस्फेट की अधिकता 
• क्षेत्र - जोधपुर, नागौर, पाली, चूरू, सीकर, झुंझुनू।

3. काच्छारी / जलोढ़ मृदा :-
• मिट्टी के कणों का आकार छोटा होता है ।
• जल ग्रहण क्षमता अधिक 
• ह्यूमस, फाॅस्फोरस की कमी
• सबसे ज्यादा उपजाऊ मृदा 
• क्षेत्र - पूर्वी राजस्थान (जयपुर, टोंक, भरतपुर, दौसा, अलवर)

4. काली मृदा / रेगूर :-
• मृदा महीन कणों वाली
• जल ग्रहण क्षमता सर्वाधिक 
• बेसाल्ट चट्टानों के शरण से
• कैल्शियम व पोटाश की पर्याप्त मात्रा 
• फाॅस्फेट व नाइट्रोजन की कमी 
• कपास के लिए सर्वोत्तम 
• हाडोती क्षेत्र में।

5. लवणीय मृदा :-
• बाड़मेर, जालौर 
• क्षारीय तत्वों की अधिकता 
• लूनी नदी का जल बालोतरा (बाड़मेर) के बाद खारा हो जाता।


6. लाल लोमी मृदा :-
• दक्षिण भाग में 
• लाल रंग - लौह तत्व की अधिकता के कारण 
• मक्का, चावल, गन्ना।

7. लाल-काली मृदा :- 
• मिश्रण - लाल + काली
• भीलवाड़ा, उदयपुर पूर्वी भाग, चित्तौड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़।
• मक्का, कपास के लिए 
• नाइट्रोजन, फास्फोरस की कमी के बावजूद भी उपजाऊ मृदा

8. लाल-पीली मृदा :-
• सवाई माधोपुर का पश्चिमी भाग, भीलवाड़ा, अजमेर, सिरोही, करौली ।
• लौह ऑक्साइड की अधिकता 
• नाइट्रोजन, कैल्शियम की कमी।


2. राज्य कृषि आयोग के अनुसार मृदा  14



   मृदा प्रकार        जिले


1. साई रोजेक्स – श्रीगंगानगर
2. रेवेरिना – श्रीगंगानगर

3. जिप्सीफेरस – Bikaner

4. Great Brown जलोढ़ मृदा – जालौर, सिरोही, पाली, नागौर, अजमेर ।

5. नॉन केल्सिल ब्राउन मृदा – सीकर, झुंझुनू, जयपुर, अलवर, अजमेर, नागौर ।

6. नवीन जलोढ़ मृदा – अलवर, भरतपुर, जयपुर, सवाई माधोपुर ।

7. पीली-भूरी मृदा – जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़, उदयपुर ।

8. नवीन भूरी मृदा – भीलवाड़ा, अजमेर ।

9. मरुस्थली मृदा – सभी मरुस्थल जिलों में ।
10. पर्वतीय मृदा – उदयपुर, कोटा ।
11. लाल लोमी मृदा – डूंगरपुर, बांसवाड़ा ।
12. गहरी काली मध्यम मृदा – कोटा, बूंदी, चित्तौड़, ..... ( दक्षिण पूर्वी राजस्थान )
13. कैल्सी ब्राउन मरुस्थली मृदा – जैसलमेर, बीकानेर। 
14. मरुस्थल व बालुका स्तूप मृदा– जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर ।

3.वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार वर्गीकरण

  1. एरिडीसोल्स 
  2. एन्टीसोल्स 
  3.  एल्फीसोल्स / अल्फीसोल्स 
  4. इनसेप्टीसोल्स 
  5. वर्टीसोल्स। 
1. एन्टीसोल्स :-
• राजस्थान के पश्चिमी भाग में लगभग सभी जिलों में।

2. एरिडीसोल्स :- 
• राजस्थान के शुष्क व अर्द्धशुष्क जिलों में यह मृदा पाई जाती है।( पश्चिमी राजस्थान )।

3. अल्फीसोल्स :-

• जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, करौली ( मैदानी क्षेत्र में )।

4. इनसेप्टीसोल्स :-

• सिरोही, पाली, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, जयपुर, दौसा, अलवर (अरावली क्षेत्र के आस - पास )।

5. वर्टीसोल्स :-

• हाड़ौती क्षेत्र ( कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ )
• आर्द्र व अतिआर्द्र जलवायु प्रदेश में।

✍️ मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना :- 

• Launch -19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ से 

• मृदा की गुणवत्ता की जांच के लिए।


✍️ मृदा अपरदन :- 

• जल के तीव्र प्रहार, वायु वेग एवं हिमपात से मिट्टी एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर एकत्रित हो जाती है, यही स्थानांतरण मृदा अपरदन या अपक्षरण कहलाता है।

 मृदा अपरदन :- 

• मिट्टी की रेंगती हुई मृत्यु 

• कृषि का क्षय रोग

• कृषि का पहला शत्रु।


जलीय अपरदन :- 
• जल के बहाव के साथ मिट्टी का अपरदन 
• राजस्थान में सर्वाधिक जल अपरदन वाला जिला कोटा 
• संभाग - कोटा  
• राजस्थान में जल अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित चंबल प्रदेश

# चादरी अपरदन :- 
• जब वर्षा के समय निर्जन पहाड़ियों की मिट्टी वर्षा जल के साथ बह जाती है इसी चादरी अपरदन कहते हैं।
 
• सर्वाधिक चादरी अपरदन :- सिरोही, राजसमंद।






Tuesday, 24 January 2023

राजस्थान के लोक गीत (Rajasthan folk Music)

IndiaEnotes 

राजस्थान के लोक गीत


1. झोरावा गीत :-

जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जो पत्नी अपने पति के वियोग में गाती है।

2. सुवटिया :-

उत्तरी मेवाड़ में भील जाति की स्त्रियां पति -वियोग में तोते (सूए) को संबोधित करते हुए यह गीत गाती है।

3. पीपली गीत :-

मारवाड़ बीकानेर तथा शेखावटी क्षेत्र में वर्षा ऋतु के समय स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।

4. सेंजा गीत :-

यह एक विवाह गीत है, जो अच्छे वर की कामना हेतु महिलाओं द्वारा गया जाता है।

5. कुरजां गीत :-

यह लोकप्रिय गीत में कुरजां पक्षी को संबोधित करते हुए विरहणियों द्वारा अपने प्रियतम की याद में गाया जाता है, जिसमें नायिका अपने परदेश स्थित पति के लिए कुरजां को सन्देश देने का कहती है।

6. जकड़िया गीत :-

पीरों की प्रशंसा में गाए जाने वाले गीत जकड़िया गीत कहलाते है।

7. पपीहा गीत :-

पपीहा पक्षी को सम्बोधित करते हुए गया गया गीत है। जिसमें प्रेमिका अपने प्रेमी को उपवन में आकर मिलने की प्रार्थना करती है।

8. कागा गीत :-

कौवे का घर की छत पर आना मेहमान आने का शगुन माना जाता है। कौवे को संबोधित करके प्रेयसी अपने प्रिय के आने का शगुन मानती है और कौवे को लालच देकर उड़ने की कहती है।

9. कांगसियों :-

यह राजस्थान का एक लोकप्रिय श्रृंगारिक गीत है।

10. हमसीढो :-

भील स्त्री तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से मांगलिक अवसरों पर गाया जाने वाला गीत है।

11. हरजस :-

यह भक्ति गीत है, हरजस का अर्थ है हरि का यश अर्थात हरजस भगवान राम व श्रीकृष्ण की भक्ति में गाए जाने वाले भक्ति गीत है।

12. हिचकी गीत :-

मेवात क्षेत्र अथवा अलवर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत दाम्पत्य प्रेम से परिपूर्ण जिसमें प्रियतम की याद को दर्शाया जाता है।

13. जलो और जलाल :-

विवाह के समय वधु पक्ष की स्त्रियां जब वर की बारात का डेरा देखने आती है तब यह गीत गाती है।

14. दुप्पटा गीत :-

विवाह के समय दुल्हे की सालियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।

15. कामण :-

कामण का अर्थ है - जादू-टोना। पति को अन्य स्त्री के जादू-टोने से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।

16. पावणा :-

विवाह के पश्चात् दामाद के ससुराल जाने पर भोजन के समय अथवा भोजन के उपरान्त स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।

17. सिठणें :-

विवाह के समय स्त्रियां हंसी-मजाक के उद्देश्य से समधी और उसके अन्य सम्बन्धियों को संबोधित करते हुए गाती है।

18. मोरिया गीत :-

इस लोकगीत में ऐसी बालिका की व्यथा है, जिसका संबंध तो तय हो चुका है लेकिन विवाह में देरी है।

19. जीरो :-

जालौर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है। इस गीत में स्त्री अपने पति से जीरा न बोने की विनती करती है।

20. बिच्छुड़ो :-

हाडौती क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जिसमें एक स्त्री जिसे बिच्छु ने काट लिया है और वह मरने वाली है, वह पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है।

21. पंछीडा गीत :-

हाडौती तथा ढूढाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जो त्यौहारों तथा मेलों के समय गाया जाता है।

22. रसिया गीत :-

रसिया होली के अवसर पर ब्रज, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्रों के अलावा नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में गए जाने वाले गीत है।

23. घूमर :-

गणगौर अथवा तीज त्यौहारों के अवसर पर स्त्रियों द्वारा घूमर नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत है, जिसके माध्यम से नायिका अपने प्रियतम से श्रृंगारिक साधनों की मांग करती है।

24. औल्यूं गीत :-

ओल्यू का मतलब 'याद आना' है।बेटी की विदाई के समयय गाया जाने वाला गीत है।

25. लांगुरिया :-

करौली की कैला देवी की अराधना में गाये जाने वाले भक्तिगीत लांगुरिया कहलाते है।

26. गोरबंध :-

गोरबंध, ऊंट के गले का आभूषण है। मारवाड़ तथा शेखावटी क्षेत्र में इस आभूषण पर गीत गाया जाता है।

27. चिरमी :-

चिरमी के पौधे को सम्बोधित कर बाल ग्राम वधू द्वारा अपने भाई व पिता की प्रतीक्षा के समय की मनोदशा का वर्णन है।

28. पणिहारी :-

इस लोकगीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रता धर्म पर अटल रहना बताया गया है।

29. इडुणी :-

यह गीत पानी भरने जाते समय स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। इसमें इडुणी के खो जाने का जिक्र होता है।

30. केसरिया बालम :-

यह एक प्रकार का विरह युक्त रजवाड़ी गीत है जिसे स्त्री विदेश गए हुए अपने पति की याद में गाती है।

31. घुडला गीत :-

मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जो स्त्रियों द्वारा घुड़ला पर्व पर गाया जाता है।

32. लावणी गीत :- (मोरध्वज, सेऊसंमन- प्रसिद्ध लावणियां)

लावणी से अभिप्राय बुलावे से है। नायक द्वारा नायिका को बुलाने के सन्दर्भ में लावणी गाई जाती है।

33. मूमल :-

जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत, जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल का सौन्दर्य वर्णन किया गया है। यह एक श्रृंगारिक गीत है।

🥇Important For All Upcoming Exams

Monday, 23 January 2023

राजस्थान लोक नृत्य(Folk dance of rajasthan)

राजस्थान लोक नृत्य(Folk dance of rajasthan)


  जातीय लोक नृत्य :-

भीलों के नृत्य
इनमें विभिन्न प्रकार के नृत्य करते हैं सामूहिक नृत्य में आधा वृत पुरूषों का आधा महिलाओं का होता है कुछ में बीच में छाता लेकर कंधों पर हाथ रख कर पद संचालन किया जाता है
(1)राई या गवरी नृत्य -यह नृत्य नाटक है जो सावन भादो में भील प्रदेशों में किया जाता है इसके प्रमुख पात्र भगवान शिव जी होते हैं माँ पार्वती के कारण ही नृत्य का नाम गवरी पड़ा। शिव को पूरिया कहा जाता है। इनके चारों ओर समस्त नृत्यकार मांदल व थाली की ताल पर नृत्य करते हैं



(2)गवरी की घाई -विभिन्न प्रसंगों को एक प्रमुख प्रंसग से जोड़ने वाला सामूहिक नृत्य
(3)युद्ध नृत्य -भीलों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में हथियार के साथ तालबद्ध नृत्य
(4)द्विचकी नृत्य -विवाह के अवसर पर महिलाओं व पुरुषों के द्वारा वृत बनाकर करने वाला नृत्य
लोकनृत्य घूमरा -बांसवाड़ा, उदयपुर डूंगरपुर के भील महिलाओं के द्वारा ढोल व थाली के साथ घूम कर किया जाता है

गरासियों के नृत्य
(1)वालर नृत्य -बिना वाघ के धीमे गति से अाधा वृत बनाकर कंधे पर हाथ रख कर किया जाता है नृत्य का प्रांरभ पुरूष के द्वारा हाथ में छाता या तलवार लेकर किया जाता है
भारत सरकार ने वालर नृत्य पर डाक टिकट जारी किया है

लूर, कूद, मांदल, गौर, जवारा, मोरिया नृत्य इस जाति के हैं

घुमंतू जाति के नृत्य
कंजर जाति के नृत्य
(1)चकरी नृत्य -ढोलक, मंजीरा, नंगाडे की लय पर युवतियों के द्वारा किया जाता है हाड़ौती अंचल का प्रसिद्ध नृत्य है

(2)धाकड़ नृत्य -हथियार लेकर किया जाता है जिसमें युद्ध की सभी कलाएं प्रदशिर्त की जाती है

सांसियो के नृत्य
यह मेवात की जाति हैं इनके नृत्य अटपटे व कलात्मक होते हैं। अंग संचालन उत्तम होता है। इनका संगीत कर्णप्रिय नहीं होता है
इसमें पुरूष व महिलाएं आमने सामने स्वच्छंद अंग भंगिमाएं बनाते हुए नृत्य होता है

कालबेलियों के नृत्य
इनमें अधिकतर महिलाएं नृत्य करती है पूंगी,खंजरी, मोरचंग वाघ होते हैं कलात्मक लहंगे, अोढनी अंगरखी पहनते हैं

(1)इन्डोणी नृत्य -खंजरी वाघ पर किया जाता है
(2)शंकरिया नृत्य -परिणय कथा पर आधारित नृत्य
(3)पणिहारी नृत्य -ढोलक व बांसुरी पर किया जाता है



(4). गुलाबो कालबेलिया नृत्य - यह नृत्यांगना अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है

गडरिया लुहारो के नृत्य -इसमें सामूहिक संरचना न हो कर गीत के साथ स्वच्छंद नृत्य किया जाता है

बणजारों के नृत्य -इनके गीत व नृत्य बेहद कर्ण प्रिय होते हैं ढोलकी प्रमुख वाघ है। मछली नृत्य, नेजा नृत्य प्रमुख हैं
मछली नृत्य पूर्णिमा के रात होने वाला नृत्य नाटक है

कथौडी जनजाति के नृत्य

(1)मावलिया नृत्य -नवरात्रि में 9दिन किया जाता है

(2)होली नृत्य -होली पर किया जाने वाला नृत्य

मेवो के नृत्य
(1)रणबाजा नृत्य -यह विशेष नृत्य है महिलाओं व पुरुषों के द्वारा किया जाता है
(2)रतवई नृत्य -अलवर जिले में महिलाओं के द्वारा किया जाता है

गूजरों के नृत्य
(1)चरी नृत्य -यह नृत्य चरी लेकर किया जाता है। सिर पर कलश व उसमें कपास (काकडे ) के बीज में तेल डालकर आग लगा दी जाती है फिर कलश लेकर नृत्य प्रारंभ किया जाता है बांकिया, ढोल व थाली से संगीत उत्पन्न करते हैं
किशनगढ़ क्षेत्र के आसपास किया जाने वाला नृत्य
किशनगढ़ की फलकू बाई इस नृत्य की प्रमुख नृत्यांगना है

भोपो के नृत्य
राजस्थान में गोगाजी, पाबू जी, देवजी, भैरू जी आदि के पड के सामने इनकी गाथा का वर्णन करते हुए नृत्य किया जाता है
कठपुतली नृत्य भी किया जाता है

मीणो के नृत्य
इनमें दो टोलियाँ होती है एक ताली बजाते हुए नृत्य को लय देती है दूसरी नृत्यकार को वृत बना कर घेरे रखती है

व्यवसायिक नृत्य :-


  भवाई नृत्य
यह नृत्य पेशेवर लोकनृत्य में बहुत लोकप्रिय है
इसमें शास्त्रीय कला की झलक मिलती है
तेज लय में विविध रंगों की पगड़ियो को हवा में फैला कर कमल का फूल बना लेना, रूमाल उठाना, गिलास पर नाचना, थाली के किनारे पर, तलवार की धार पर, कांच के टुकड़ों पर नृत्य किया जाता है
रूपसिंह, दया राम, तारा शर्मा, अस्मिता काला प्रमुख कलाकार हैं

तेरहताली नृत्य
कामड जाति के लोगों द्वारा रात रात भर यश गाथाएं कर नृत्य किया जाता है
महिलाएं नौ मंजीरे दाएं पैर में, दो मंजीरे हाथ में कोहनी के ऊपर बांधती है और दो मंजीरे हाथों में रखती है इसलिए इसे तेरहताली नृत्य कहते हैं
मंजीरा, तानपुरा, चौवारा पुरुष बजाते है

1954 में नेहरू जी के सामने गडिया लौहार सम्मेलन में यह नृत्य प्रस्तुत किया गया
मांगी बाई इस नृत्य के लिए विख्यात है 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया

कच्छी घोडी नृत्य

इस नृत्य में नृत्यकार पैटर्न बनाकर नृत्य करते हैं इसमें बांस की खपच्चियों से घोडा बनाया जाता है जिसे ढककर नृत्यकार नाचते हैं

अन्य नृत्य :- 

झाँझी नृत्य -मारवाड में किया जाता है

थाली नृत्य – रावण हत्था वाघ यंत्र के

साथ किया जाता है
डांग नृत्य -वल्लभ सम्प्रदाय विशेष कर नाथद्वारा, राजसमंद के भक्तों द्वारा किया जाता है
लांगुरिया नृत्य- करौली के यदुवंशी शासकों की कुलदेवी के रूप में कैलादेवी के लख्खी मेले में गीत गाया व नृत्य किया जाता है
खारी नृत्य -यह वैवाहिक नृत्य है दुल्हन की विदाई के समय सखियों द्वारा किया जाता है
राजस्थान के मेवाड़ विशेष कर अलवर में यह नृत्य मुख्य रूप से होता है

चरवा नृत्य
माली समाज की महिलाओं के द्वारा किसी के संतान होने पर कांसे के घड़े में दीपक जलाकर सिर पर रखकर किया जाता है कांसे के घड़े के कारण चरवा नृत्य कहलाता है

सालेडा नृत्य
राजस्थान के विभिन्न प्रांतों में समृद्धि के रूप में किया जाने वाला नृत्य
रण नृत्य
मेवाड़ में विशेष रूप से प्रचलित है युवकों द्वारा तलवार आदि लेकर युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुए नृत्य किया जाता है

चरकूला नृत्य
राजस्थान के पूर्वी भाग में विशेष कर भरतपुर जिले में किया जाता है मूल रूप से उत्तर प्रदेश का नृत्य है

सूकर नृत्य
आदिवासियों के लोक देवता की स्मृति में मुखौटा लगा कर किया जाता है

पेजण नृत्य
बांगड में दीपावली के अवसर पर किया जाता है
आंगी -बांगी गैर नृत्य
यह चैत्र वदी तीज को रेगिस्‍तानी क्षेत्र में लाखेटा गांव में किया जाता है धोती कमीज के साथ लम्बी आंगी पहनी जाती है इसलिए आंगी गैर भी कहते हैं
तलवारों की गैर
उदयपुर से 35 किमी दूर मेनार नाम गांव में यह प्रसिद्ध है यह वहां ऊकांरेश्वर पर होता है सभी के लिए चूडीदार पजामा, अंगरखी, साफा होना आवश्यक माना जाता है

नाहर नृत्य
यह नृत्य भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे में होली के बाद रंग तेरस को किया जाता है भील, मीणा, ढोली, सरगडा जाति के लोग रूई को शरीर पर चिपका कर नाहर का वेश धारण कर नृत्य करते हैं
शाहजहां काल से यह आयोजित किया जाता है
झेला नृत्य
सहरिया आदिवासियों का यह फसली नृत्य है फसल पकने पर आषाढ़ माह में किया जाता है
इन्दरपरी नृत्य
सहरिया लोग इन्द्रपुरी के समान अलग अलग मुखौटे लगा कर नृत्य करते हैं। मुखौटे बंदर, शेर, राक्षस, हिरण आदि के मिट्टी कुट्टी के बने होते हैं

राड नृत्य
होली पर वांगड अंचल में राड खेलने की परम्परा है कहीं कंडो से, पत्थरों से, जलती हुई लकड़ी से खेला जाता है भीलूडा, जेठाना गांव में पत्थरों की राड खेली जाती है

वेरीहाल नृत्य
खैरवाडा के पास भाण्दा गांव में रंग पंचमी को किया जाता है वेरीहाल एक ढोल है

सुगनी नृत्य
यह नृत्य भिगाना व गोइया जाति के युवक युवतियों के द्वारा किया जाता है।युवतियां आकर्षक वस्त्रों में ही नहीं सजती अपितु अपने तन पर और चेहरे पर जडीबूटी का रस लेपती है और वातावरण सुंगधित होता है इसलिए यह सुगनी नृत्य के नाम से जाना जाता है

भैरव नृत्य
होली के तीसरे दिन ब्यावर में बादशाह बीरबल का मेला लगता है मेले का मुख्य आकर्षण बीरबल होता है और नृत्य करता हुआ चलता है

फूंदी नृत्य
विवाह के विशिष्ट अवसरों पर किया जाता है

बिछुड़ो नृत्य
यह कालबेलियों महिलाओं में लोकप्रिय हैं नृत्य के साथ गीत बिछुडो गाया जाता है

राजस्थान के लोक देवता(Rajasthaan ke Lokdevata)

राजस्थान के लोक देवता(Rajasthaan ke Lokdevta)


गोगाजी ( गोगा बप्पा ) (11 वीं शताब्दी):-
चैहान वंशीय राजपूत , 
जन्म स्थान - चुरू का ददरेवा गांव में हुआ। 
पिता जेवरसिंह एवं माता बाछल देवी। 
लगभग 1103 ई. सन् में मेहमूद गजनवी से गायों की रक्षा करते हुए वीरगती को प्राप्त हुए। 
गजनवी ने इन्हें ‘‘जाहरपीर ’’ की संज्ञा दी। 
इन्हे सांपो के देवता के नाम से जाना जाता हैं।
किसानों के द्वारा पहली बार हल जोतने पर हल और हाली को इनके नाम की राखी बांधी जाती हैं  जिसे ‘‘गोगाराखड़ी ’’ कहते हैं।
इनका थान खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होता है। 
इनका मेला भाद्रपद कृष्णपक्ष की नवमी को गोगामेड़ी में भरता हैं। 
इनका प्रतीक चिन्ह नीली घोड़ी है। 
गोगाजी की ओल्ड़ी जालौर ( सांचौर ) में हैं।

गोगाजी के अन्य मन्दिर :-
गुजरात , राजस्थान , पंजाब एवं हरियाणा में हैं।

धूरमेड़ी:- गोगाजी का समाधिस्थल जो गोगामेड़ी ( हनुमानगढ़ ) में स्थित हैं।

शीर्षमेड़ी:- गोगाजी का जन्मस्थान जो ददरेवा में स्थित हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

तेजाजी :-
यह नागवंषीय जाट। 
जन्मस्थान खड़नाल ( नागौर ) । 
पिता ताहड़जी एवं माता राजकुंवर। 
तेजाजी ने लाखा गुर्जरी की गायों को मेरों से मुक्त करवाया। इनके भोपे घोड़ले कहलाते हैं , जो सर्पदंष का इलाज करते हैं। इनका मेला भाद्रभद शुक्ल दषमी को लगता हैं। 
यह मुख्यतः अजमेर के लोकदेवता हैं।
इनके मन्दिर सुरसुरा ( अजमेर ), ब्यावर, सेंदरिया ( अजमेर ) में हैं। 
इनका मेला परबतसर ( नागौर ) में भरता हैं। यह आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला हैं। 
इनकी घोड़ी का नाम लीलण ( सिणगारी) हैें। 
इनकी गिनती पंच पीरों में नही होती हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।



रामदेवजी (1462 वि . सवंत् से 1515 वि. संवत् ):-
यह तंवर राजपूत जाति से थे।  
जन्मस्थान बाड़मेर के शिव तहसील के उड़काष्मेर नामक स्थान पर हुआ। 
पिता का नाम अजमालजी एवं माता का नाम मैणादे। 
पत्नी का नाम नेतलदे। 
जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वितीया को एवं भाद्रपद शुक्ल एकादषी को रूणीचा में समाधि ली। 
इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता हैं।
इन्हें रामसापीर के नाम से भी जानते हैं। 
इन्हे साम्प्रदायिक सद्भावना एवं एकता के देवता के रूप में जाना जाता हैं। 
ऊँच – नीच छुआ – छूत के विरोधी और सामाजिक समरसता के प्रतीक रूप में पूज्य क्योंकि इन्हें सभी जातियों के द्वारा पूजा जाता हैं। 
इनके द्वारा अछूतो को पुनःस्थापित करने के लिए ‘‘ कामड़िया संप्रदाय’’ की स्थापना की गई। 
कामड़िया संप्रदाय की महिलाओं के द्वारा रामदेवजी के मेले के अवसर पर तेरहताली नृत्य किया जाता हैं।
इनके गुरू बालीनाथ थे। 
इनके ‘‘पगल्ये ’’ पूजे जाते हैं। 
इनके रात्री जागरण को ‘‘जम्मा ’’ कहते हैं। 
इनकी ध्वजा नेजा कहलाती हैं , जो सफेद और पचरंगी होती हैं।
ये राजस्थान के एकमात्र देवता थे जो साहित्यकार भी हैं। 
इन्होने ‘‘24 बाणियां ’’ ( सामाजिक बुराईयों पर ) नामक पुस्तक लिखि थी। 
इनके भक्त रखियां कहलाते हैं। 
इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया से दषमी तक भरता हैं। 
इनके प्रसिद्ध मन्दिर रूणीचा ( जैसलमेर ), मसुरिया ( जोधपुर ), बिराटियां ( अजमेर ), सुरताखेड़ा
( चित्तौड़गढ़ ), छोटा रामदेवरा ( गुजरात ) हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

पाबुजी :-
जन्म 1341 विक्रम सम्वत् मंे फलौदी के कोलूमंड़ गांव में हुआ। 
ये राठौड़ वंश के थे। 
माता का नाम कमलादे एवं पिता का नाम धांधल। 
पत्नी का नाम सुप्यारदे। 
देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई जिंदराज खींची से बचातें हुए प्राण त्यागे। 
देवल चारणी ने अपनी घोड़ी केसर कालमी पाबूजी को दी थी। चांदा , डेमा और हरमल पाबूजी के सहयोगी थे। 
पाबुजी को लक्ष्मण का अवतार मानते हैं। 
इनके जन्म व मृत्यु के दिन लोकगाथा ‘‘ पाबुजी के पावड़े ’’ गाये जाते हैं। 
रेबारी ( राइका , नाइक, थोरी ) जाति के अराध्य देवता हैं।
प्रमुख पुस्तक ‘‘ पाबु प्रकाष ’’ हैं।
इसके लेखक ‘‘ आंसिया मोड़जी ’’ हैं।
पाबूजी कीफड़ सर्वांधिक लोकप्रिय फड़ हैं।
इसकी मूल प्रतिलिपिवर्तमान में जर्मनी के संग्रहालय में रखी हुई हैं। 
फड़ गाते समय रावणहत्थाबजाया जाता हैं।
मेला चैत्र अमावस्या को भरता हैं। 
पाबूजी प्लेग और ऊँटो के रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं , क्योंकिजब भी ऊँट बीमार होता हैं तब इनकी फड़ बांची जाती हैं।

नोट:-निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

हड़बुजी:-
जन्म नागौर के भूड़ेल गांव में हुआ। 
पिता का नाम मेहाजी सांखला। 
इनका कार्यस्थल बैगंटी रहा। 
इनकी गाड़ी की पूजा की जाती हैं। क्योंकि यह बैलगाड़ी से लावारिस पशुओं के लिए चारा लाते थे। 
हड़बुजी रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। 
इन्होने रामदेवजी के समाज- सुधार के कार्यों को पूरा करने का प्रयास किया था।
नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

देवनारायण जी:-
जन्म स्थान भीलवाड़ा के आंसिद गांव में सम्वत् 1300 में हुआ। पिताजी संवाई भोज एवं माता सेडू खटाणी।
यह गुर्जर बगड़ावत वंष के थे। ब

चपन का नाम उदयसिंह। 
पत्नी पीपलदे , जो मध्यप्रदेश के धार के शासक
जयसिंह की पुत्री थी। 
विष्णु का अवतार माना जाता हैं। 
इनकी फड़ सबसे लम्बी हैं जो 35 गज हैं। 
इनकी फड़ पर भारत सरकार के द्वारा 5 रु का टिकट भी जारी किया जा चुका हैें। 
भाद्र शुक्ल छठ और सप्तमी को मेला भरता हैं।
इनका प्रमुख मंदिर आंसिद ( भीलवाड़ा ), देवधाम जोधपुरिया ( टोंक ), देवडूंगरी ( चित्तौड़गढ़ ) और देवमाली
( ब्यावर ) में हैं।
नोट:-निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

मेहाजी :-
मारवाड़ के लोकदेवता। 
मांगलिया ( राजपूत ) जाति के अराध्य देव हैं। 
इन्हे पंचपीरों में गिना जाता हैं , 
घोड़ा किरड़ काबरा हैं। 
इनका मेला जोधपुर के बापणी गांव में कृष्ण जन्माष्टमी को भरता हैं। 
जैसलमेर के रांणगदेव से युद्ध करते हुए शहीद हुए।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक

भूरिया बाबा:-
यह गोमतेष्वर के नाम से जाने जाते हैें। 
यह मारवाड़ ( गोड़वाड़ ) के मीणा जाति के आराध्य देव हैं। 
दक्षिण राजस्थान के मीणा कभी भी इनकी झूठी कसम नहीं खाते हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

मल्लीनाथजी :-
जन्म 1358 ई. सन् में हुआ। 
पिता का नाम तीड़ाजी एवं माता का नाम जाणीदेव। 
इन्होने निजामुद्दीन की सेना को परास्त किया था। 
इनका मेला चैत्र कृष्ण एकादषी से पन्द्रह दिन तक लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा‌ ( बाड़मेर ) नामक स्थान पर पशु मेला भरता हैं। 
यह मेला मल्लीनाथजी के राज्याभिषेक के अवसर से वर्तमान तक आयोजित हो रहा हैं।
बाड़मेर का गुड़ामलानी का नामकरण मल्लीनाथजी के नाम पर ही हुआ हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

कल्लाजी :-
इनका जन्म मेड़ता ( सामियाना ) में हुआ था। 
मीराबाई इनकी बुआ थी। 
चित्तौड़ के तीसरे शाके (1567 ) में मुगल अकबर की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। 
यह चार हाथ वाले लोकदेवता हैें। 
इनकी पूजा भूत- पिषाच से ग्रस्त व्यक्ति, पागल कुत्ते, विषैले नाग के काटने पर की जाती हैं। 
इनकी मुख्य पीठ जालौर के रनैला गांव में हैं। 
इन्हे शेषनाग का अवतार माना जाता हैं।
नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।.



बिग्गाजी :-
जाखड़ समाज के इष्टदेव। 
जन्म बीकानेर के रीढ़ी गांव में हुआ। 
इन्होने मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा की। 
डूंगरपुर के बिग्गा गांव में इनका मुख्य थान हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

झुंझारजी :-
इनका जन्म सीकर में हुआ था। 
खेजड़ी के पेड़ के नीचे इनका निवास स्थान माना जाता हैं।
नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

देवबाबा :-
इनका जन्म भरतपुर के नांगल गांव में हुआ था। 
यह गुर्जर व ग्वालों के अराध्य देव हैं। 
इन्हे पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान था। 
इनका मेला भाद्रपद शुक्ल ( सुदी ) पंचमी एवं चैत्र सुदी पंचमी को भरता हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

मामादेव :-
मेवाड़ में बरसात के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। 
इनकी मूर्ति लकड़ी की होती हैं , जो मुख्य द्वार पर तोरण के रूप में एवं गांव के बाहर सड़क के किनारे रखी जाती हैं।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

तल्लीनाथजी:-
यह राठौड़ वंषीय थे। 
इनका मुख्य मन्दिर पांचोटा पहाड़ी ( जालौर ) में पड़ता हैं।
इनके बचपन का नाम ‘‘ गांग देव’’ था। 
इनके गुरू जलन्धर ने इनका नाम तल्लीनाथ रखा था।

नोट:- निर्गुण निराकार ईष्वर के उपासक।

Sunday, 22 January 2023

राजस्थान की अपवाह तन्त्र - नदियाँ ( Rajasthan River's)

राजस्थान की नदियाँ

राजस्थान के जल संसाधनों को प्रमुख रूप से दो भागो मैं बांटा गया है –

1. नदियों का जल
2. झीलों का जल

राजस्थान में प्रवाह के आधार पर नदियों को तीन भागों में बांटा गया है -

1. अरब सागर में गिरने वाली नदियां - 17%
2. बंगाल की खाड़ी की ओर जाने वाली नदियां - 23%
3. अंतः प्रवाह वाली नदियां - 60%

1. अरब सागर में गिरने वाली नदियां - 

Trick - सालू की मां पश्चिमी बनास पर सोजा

साबरमती, लूनी, माही, पश्चिमी बनास, सोम, जाखम

1. लूनी नदी -

उदगम स्थल - अजमेर जिले की आनासागर झील/नाग पर्वत

प्रवाह की दिशा - दक्षिण-पश्चिम
लूनी नदी की लंबाई - 330 किलोमीटर
लूनी नदी पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख नदी है।
भारत की एकमात्र नदी जिसका आधा भाग खारा तथा आधा भाग मीठा हैं।

लूनी नदी बाड़मेर जिले के बालोतरानामक स्थान से खारी हो जाती है।

लूनी नदी के खारी होने का एक प्रमुख कारण मिट्टी की लवणीयता है।

लूनी नदी के उपनाम - लवणवती, मारवाड़ की गंगा, रेगिस्तान की गंगा,आधी मीठी आधी खारी नदी, अन्त: सलिला( कालिदास ने), साकी (अजमेर मैदान), सागरमती (उद्गम स्थल)

लूनी नदी के प्रवाह वाले जिले - अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौरपी

लूनी नदी की सहायक नदियां - लीलडी, सूकड़ी, जोजड़ी, सागी, मीठड़ी, जवाई, बांडी 

लूनी नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी - जवाई
लूनी नदी की सहायक नदी जिसका उद्गम स्थल अरावली पर्वत नहीं है - जोजड़ी

लूनी नदी राजस्थान के जालौर जिले से निकलकर कच्छ की खाड़ी में गिरती है।
जवाई नदी का उदगम स्थल - गोरिया गांव (पाली)

जवाई नदी के प्रवाह वाले जिले - पाली, जालौर, बाड़मेर
सुमेरपुर (पाली) के निकट जवाई नदी पर जवाई बांध बना हुआ है। इसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहते हैं।

2. पश्चिमी बनास -

उदगम स्थल - नया सानवारा गांव (सिरोही)
पश्चिमी बनास कच्छ के रन (कच्छ की खाड़ी) में विलुप्त हो जाती है।
यह सिरोही जिले में प्रवाहित होती है।

3. माही नदी -

उदगम स्थल - (धार जिला) मध्य प्रदेश की विंध्याचल पहाड़ियों से (मेहद झील)

माही नदी दक्षिणी राजस्थान की प्रमुख नदी है।
माही नदी राजस्थान में बांसवाड़ा जिले के खांदू गांव से प्रवेश करती हैं।

माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
माही नदी बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले की सीमा बनाती है।

माही नदी अपने प्रवाह क्षेत्र में "उल्टा U" बनाती है।

• माही नदी के उपनाम - कांठल की गंगा, आदिवासियों की गंगा, वागड़ की गंगा, दक्षिण राजस्थान की गंगा

• माही नदी डूंगरपुर जिले में सोम और जाखम नदियों के साथ मिलकर बेणेश्वर नामक स्थान पर त्रिवेणी का निर्माण करती है।

•बेणेश्वर में लगने वाला मेला आदिवासियों का कुंभ कहलाता है।

• माही नदी पर बांसवाड़ा जिले में बरखेड़ा नामक स्थान पर माही बजाज सागर बांध बनाया गया है।

अनास नदी - विंध्याचल (MP) से निकलकर बांसवाड़ा में बहती हुई माही नदी में मिल जाती है।

माही नदी पर पंचमहल, रामपुर (गुजरात) में कडाना बांध बनाया गया है।

माही नदी सिंचाई परियोजना से लाभान्वित राज्य - राजस्थान, गुजरात
माही नदी की कुल लंबाई - 576 किलोमीटर

माही नदी की राजस्थान में लंबाई - 171 किलोमीटर

माही की सहायक नदियां - सोम, जाखम, अनास, हरण, चाप, मोरेन 
(Trick - SJAHCM)

माही के प्रवाह की दिशा - पहले उत्तर-पश्चिम और पुनः वापसी में दक्षिण-पश्चिम।

माही नदी गुजरात में बहते हुए खंभात की खाड़ी में विलुप्त हो जाती है।

माही नदी तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, एवं गुजरात में बहती हैं।
इसके प्रवाह क्षेत्र को छप्पन का मैदान कहा जाता है।
माही की सहायक नदी इरु नदी इसमें माही बजाज सागर बांध से पहले आकर मिलती है। शेष नदियां बांध के पश्चात मिलती हैं।

4. सोम नदी -

उदगम स्थल - बीछामेडा की पहाड़ियां (उदयपुर)

सोम नदी उदयपुर व डूंगरपुर की सीमा बनाती है।
सोम नदी डूंगरपुर में बेणेश्वर में माही नदी में मिलती है!

प्रवाह वाले जिले - उदयपुर, डूंगरपुर


 5. जाखम नदी -

उदगम स्थल - छोटी सादड़ी (प्रतापगढ़)

प्रवाह वाले जिले - प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर

विलुप्त - डूंगरपुर (बेणेश्वर) में माही नदी में मिल जाती हैं।

6. साबरमती नदी -

उदगम स्थल - गोगुंदा की पहाड़ियां (उदयपुर)

यह राजस्थान में एकमात्र उदयपुर जिलेमें लगभग 30 किलोमीटर बहती है!

इसका अधिकांश प्रवाह गुजरात राज्य में है
साबरमती गुजरात के सावरकांठा जिले से गुजरात में प्रवेश करती है।

गुजरात के गांधीनगर और अहमदाबाद साबरमती नदी के किनारे बसे हुए हैं।
साबरमती नदी गुजरात में बहते हुए खंभात की खाड़ी में विलुप्त हो जाती है।

सहायक नदियां - वाकल (उद्गम - गोगुंदा की पहाड़ियां (उदयपुर)), माजम, मेश्वा, हथमती

2. बंगाल की खाड़ी की ओर जाने वाली नदियां -


Trick - बेबच कोका बापा गंग 

बेडच, बनास, चंबल, कोठारी, कालीसिंध, बाणगंगा, पार्वती, गंभीरी, गंभीर

1. चंबल नदी - 

उदगम स्थल - महू जानापाव की पहाड़ियां (MP)

चंबल नदी राजस्थान में चौरासी गढ़ (मंदसौर) MP से चित्तौड़ में प्रवेश करती हैं।

चंबल नदी चित्तौड़गढ़ के बाद क्रमशः कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली और धौलपुर जिलों में बहने के बाद राजस्थान से बाहर निकल जाती है।

चंबल नदी कोटा, बूंदी की सीमा बनाती है।

चंबल नदी तीन राज्यों MP, RJ, UP में प्रवाहित होती है।

चंबल नदी मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान के तीन जिलों धौलपुर, सवाई माधोपुर, करौली के साथ सीमा बनाती है।

चंबल नदी राजस्थान की एकमात्र नदी है जो कि दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है।

चंबल नदी उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना नदी में विलुप्त हो जाती हैं।

चंबल नदी पर चित्तौड़गढ़ जिले में भैंसरोडगढ़ नामक स्थान पर चूलिया जलप्रपात स्थित है।
यहां बामनी नदी आकर इसमें मिलती है।

उपनाम - चर्मण्वती, कामधेनु, बारहमासी,नित्यवाही
चंबल नदी के अलावा माही नदी को भी बारहमासी नदी कहा जाता है। 

सहायक नदियां - कालीसिंध, कुराल, मेज, बनास, बामणी, पार्वती

TRICK - काका में बाबा मापा

चंबल नदी की कुल लंबाई - 965 / 966 KM

राजस्थान में चंबल नदी की लंबाई - 135 KM

राजस्थान की सबसे लंबी नदी - बनास

राज्य में सर्वाधिक सतही जल चंबल नदी में उपलब्ध है।

सर्वाधिक जलग्रहण क्षमता वाली नदी - बनास

चंबल नदी पर बनाए गए बांध - 

1. गाँधीसागर - मंदसौर जिला (मध्यप्रदेश)

2. राणा प्रताप सागर - चित्तौड़गढ़

3. जवाहर सागर - कोटा - बूंदी सीमा पर (पिकअप बांध)

4. कोटा बैराज - कोटा (सिंचाई के लिए)

2. बनास नदी -

उदगम स्थल - राजस्थान में कुंभलगढ़ के निकट खमनोर की पहाड़ियां
इस नदी को वर्णाशा नदी के नाम से भी जाना जाता है।

बनास नदी की कुल लंबाई - 480 KM

बनास नदी मेवाड़ क्षेत्र की महत्वपूर्ण नदी है।

बनास नदी के प्रवाह वाले जिले 
- राजसमंद, चित्तौड़, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, सवाई माधोपुर

बनास सवाई माधोपुर जिले में रामेश्वर के निकट पादरला गांव के निकट चंबल में मिल जाती है।

बनास नदी पर टोंक जिले में बीसलपुर बांध बना हुआ है।

बीसलपुर बांध को अजमेर के चौहान शासक बीसलदेव / विग्रहराज चतुर्थ ने बनवाया था।
बनास नदी पर टोंक तथा सवाई माधोपुर की सीमा पर ईसरदा बांध बनाया गया है।

ईसरदा बांध को काफर डैम कहा जाता है।

ईसरदा बांध से जयपुर शहर के लिए जलापूर्ति होगी।

बनास की सहायक नदियां - बेड़च, मेनाल कोठारी, खारी, मानसी, मोरेल, गंभीरी
 बनास नदी भीलवाड़ा जिले में बींगोद नामक स्थान पर मेनाल और बेड़च के साथ मिलकर त्रिवेणी बनाती है।

3. बेड़च नदी -

उदगम स्थल - गोगुंदा की पहाड़ियां, उदयपुर
बेड़च नदी उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा जिले में बहते हुए बींगोद के पास बनास में मिल जाती हैं
बेड़च को उद्गम स्थल से उदयसागर झील तक आयड कहा जाता है।

4. कोठारी नदी -
उदगम स्थल - दिवेर (राजसमंद)

कोठारी नदी राजसमंद और भीलवाड़ा जिले में बहते हुए नंदराय नामक स्थान पर बनास नदी में मिल जाती है।
भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी पर मेजा बांध बना हुआ है।


5. गंभीरी नदी - 

उदगम स्थल - छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़

यह प्रतापगढ़ और चित्तौड़ में बहकर चित्तौड़गढ़ जिले में ही बनास में मिल जाती है।
यह बनास की सहायक नदी है।

6. कालीसिंध नदी - 

उदगम स्थल - देवास (मध्यप्रदेश)

कालीसिंध रायपुर (झालावाड़) से बिंदा गांव से राजस्थान में प्रवेश करती है।

कालीसिंध कोटा और बांरा की सीमा पर बहते हुए चंबल नदी में कोटा जिले के नौनेरा गांव के पास मिल जाती है।

सहायक नदियां - आहू, परवन, निमाज

 (Trick - अपनी)

आहू नदी - 

उदगम स्थल - सुस्नेर (MP)

आहू नदी गागरोन के पास कालीसिंध में मिल जाती है।

गागरोन का प्रसिद्ध जल दुर्ग आहू और कालीसिंध नदियों के संगम पर बना हुआ है!

परवन नदी का उद्गम स्थल - विंध्याचल की पहाड़ी (MP)

परवन नदी (पलायता गांव) बांरा जिले में कालीसिंध में मिल जाती हैं।

7. पार्वती नदी -

उदगम स्थल - सेहोर (MP)

बांरा जिले के करियाहट नामक स्थान से राजस्थान में प्रवेश करती है।

पार्वती कोटा तथा बांरा की सीमा पर बढ़ते हुए सवाई माधोपुर में पलिया नामक स्थान पर चंबल नदी में मिल जाती हैं!

प्रवाह वाले जिले - बांरा, कोटा, सवाई माधोपुर

8. बाणगंगा नदी - 

• उपनाम - अर्जुन की गंगा, ताला नदी, रूण्डित नदी।

• उदगम- जयपुर की बैराठ पहाड़िया

• बाणगंगा नदी पर जयपुर जिले में रामगढ़ बांध बना है जो कि जयपुर शहर की जलापूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है।

• बाणगंगा नदी जयपुर, दोसा और भरतपुर में बहते हुए आगरा में यमुना नदी में मिल जाती हैं।
• बैराठ की सभ्यता का जन्म बाणगंगा नदी के किनारे हुआ था।

9. गंभीर नदी - 

• उदगम - सवाई माधोपुर के गंगापुर से

• गंभीर नदी सवाई माधोपुर, करौली, भरतपुर धौलपुर में बहते हुए आगरा के पास यमुना नदी में मिल जाती है।
• गंभीर नदी पर करौली जिले में पांचना बांध बना हुआ है यह मिट्टी से निर्मित सबसे बड़ा बांध है।

• केवलादेव के लिए जल आपूर्ति की मांग पांचना बांध से की जा रही है!

• महावीर जी का प्रसिद्ध जैन मंदिर गंभीर नदी के किनारे बना है।

• पांचना बांध में गिरने वाली नदियां -
 भद्रावती,, माची, अटा, भैंसावर, बरखेड़ा

Trick - भीम अभी बाजार गया है 

3. आंतरिक प्रवाह वाली नदियाँ - 


Trick - काका मेसा रूघचू

कातंली, काकनेय, मेंथा, साबी, रूपारेल, घग्घर, चूहड़ सिद्ध

1. घग्घर नदी - 

• घग्घर नदी हिमाचल प्रदेश में शिमला के पास शिवालिक की पहाड़ियों से निकलती हैं।
• घग्घर नदी वैदिक काल की सरस्वती नदी हैं।
• यह राजस्थान की एकमात्र नदी है जिसका उदगम हिमालय से होता है।
• घग्घर नदी बरसात के दिनों में अपना पानी श्रीगंगानगर के अनूपगढ़ तक ले जाती है।

• घग्घर नदी को पाकिस्तान में हकरा के नाम से जाना जाता है।
यह पाकिस्तान में गड्ढों या पोखर के रूप में मिलती हैं।

• घग्घर नदी को मृत नदी के नाम से भी जाना जाता है।

• यह राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी तहसील के तलवाड़ा गांव के पास राजस्थान में प्रवेश करती है।

• उपनाम - सरस्वती, नट नदी, मृत नदी, हकरा(पाकिस्तान में) , राजस्थान का शोक , दृषद्वती नदी।

2. काकनेय नदी / मसूरदी नदी -

• उदगम - जैसलमेर के कोटारी / कोट्यारी गांव से होता है।
स्थानीय भाषा में इसे मसूरदी नदी के नाम से भी जाना जाता है।

• काकनेय / काकनी नदी जैसलमेर में बुझ झील का निर्माण करती हैं।
• बरसात के दिनों में इस नदी की एक शाखा दूसरी ओर निकल कर मीठा खाड़ी नामक मीठी झील का निर्माण करती हैं।

3. कातंली नदी -

• उदगम - सीकर की खण्डेला पहाड़ी
• कातंली नदी से सीकर व झुंझुनू में बहने के बाद चुरू की सीमा पर जाकर विलुप्त हो जाती हैं।
• कातंली नदी का बहाव क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है।
• कातंली नदी झुंझुनू को दो भागों में बांटती है।
• राजस्थान में पूर्णतः बहाव की दृष्टि से राजस्थान की आंतरिक अपवाह की सबसे लम्बी नदी।

4. मेंथा नदी -

• उदगम स्थल - मनोहरपुर, जयपुर
• मेंथा जयपुर और नागौर जिलों में बहते हुए सांभर झील में मिल जाती हैं।

5. साबी नदी -

उदगम - सेवर की पहाड़ी, जयपुर

• साबी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है।
• सेवर की पहाड़ियों से निकलकर यह नदी अलवर में बहती हुई हरियाणा में जाकर विलुप्त हो जाती हैं।

6. रूपारेल नदी / वाराह नदी / लसवारी नदी - 

• रूपारेल नदी अलवर जिले से निकलकर अलवर और भरतपुर में बहते हुए आगरा तक जाती है।
• नोह सभ्यता का विकास रूपारेल नदी के किनारे हुआ था।

• नोह सभ्यता में जाखम बाबा / यक्ष की मूर्ति तथा गौरेया पक्षी के साक्ष्य मिले हैं।

Saturday, 21 January 2023

राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC)

राजस्थान लोक सेवा आयोग(RPSC)

स्थापना – 22 Dec. 1949

ली कमीशन 1923 :–  इस कमीशन ने भारत में एक संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की सिफारिश की थी, लेकिन प्रांतीय लोक सेवा आयोग पर विचार नहीं किया।

✍️  स्वतंत्रता के समय केवल राजस्थान की 3 रियासतों में लोक सेवा आयोग थे –
1. जयपुर 
2. जोधपुर
3. बीकानेर ।

RPSC के संवैधानिक प्रावधान :–
संविधान - भाग 4 
अनुच्छेद - 315 से 323 तक 
✍️ राज्य लोक सेवा आयोग के गठन, कार्य, शक्तियां, नियुक्ति, बर्खास्तगी का प्रावधान है।

अनुच्छेद 315 (1) – प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्य लोक सेवा आयोग का गठन किया जाएगा ।

अनुच्छेद 315 (2) – दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान भी है ।

अनुच्छेद 316 - राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति तथा कार्यकाल ।

नियुक्ति :-  मुख्यमंत्री के परामर्श पर राज्यपाल द्वारा ।

योग्यता :- आयोग के आधे सदस्यों को 10 वर्ष का केंद्र – राज्य सरकार में सरकारी सेवा का अनुभव होना चाहिए ।

✍️ अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर वरिष्ठतम सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त करने की परंपरा है।

 कार्यकाल :- 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु ,जो भी पहले हो।
 
📝 RPSC के सदस्य अपनी पदावधि की समाप्ति के बाद उस पद पर सदस्य नियुक्त नहीं हो सकते हैं, लेकिन सदस्य को पदावधि समाप्ति के पश्चात अध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं।

📝 RPSC सदस्य तथा अध्यक्ष योग्यता के आधार पर UPSC अध्यक्ष / सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं ।

 RPSC अध्यक्ष सदस्य का त्याग पत्र - राज्यपाल को हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा लिखित में त्याग पत्र प्रस्तुत करेगा।

 अनुच्छेद 317 :- RPSC अध्यक्ष सदस्य को पद से हटाया जाना।
 • अध्यक्ष तथा सदस्यों को केवल कदाचार के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय(supreme court) की जांच के पश्चात हटाया जा सकता है ।
✓ राज्यपाल के प्रसादपर्यंत नहीं होंगे ।

NOTE :- जांच के दौरान अध्यक्ष तथा सदस्यों को राज्यपाल निलंबित कर सकता है।

कदाचार :-
• न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित।
• पद के कर्तव्यों से बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है।
• राष्ट्रपति की राय में शारीरिक व मानसिक सत्य से दिल्ली से दिल लेकर कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य हो।

अनुच्छेद 318 :- सेवा - शर्तें ।

• RPSC के सदस्यों की संख्या तथा उनकी सेवा – शर्तें राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती है।

• RPSC के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के बाद वेतन में अलाभकारी परिवर्तन नहीं कर सकते ।

RPSC सचिवालय :-
 एक सचिव + अन्य अधिकारी 
• प्रथम सचिव - श्याम सुंदर शर्मा
• वर्तमान सचिव - हरजी लाल अटल 

RPSC की संगठनात्मक संरचना

RPSC को 6 विभागों में बांटा गया है –

1. प्रशासनिक विभाग :- कर्मचारियों की सेवा शर्तें सुरक्षा व्यवस्था तथा रिकॉर्ड रखना।

2. भर्ती विभाग :- आवेदन पत्र प्राप्त करना परीक्षा की कार्यवाही साक्षात्कार करवाना ।

3. परीक्षा विभाग :- परीक्षा से संबंधित सुधार कार्य को कुशलता-पूर्वक संचालन करना।

4. लेखा विभाग :-बजट , आय-व्यय का आकलन करना।

5. विधि विभाग :- विधिक मामलों में परामर्श ।

6. शोध विभाग :- शोध कार्य करना ।

• RPSC के प्रथम अध्यक्ष – S.k. घोष
• RPSC के  2nd अध्यक्ष – S.C. त्रिपाठी 
• सबसे लंबा कार्यकाल – d.s. तिवारी 

• RPSC के वर्तमान सदस्य यश तिवारी बीजेपी अध्यक्ष कुमावत DGP अध्यक्ष 

• सबसे कम कार्यकाल वाले अध्यक्ष - P. S. यादव

• वर्तमान अध्यक्ष - संजय कुमार क्षोत्रिय

✍️ वर्तमान सदस्य
1. राजकुमारी गुर्जर
2. संगीता आर्य 
3. जसवंत राठी 
4. बाबूलाल कटारा
5. मंजू शर्मा  
6.________
7.________

राज्य मानवाधिकार आयोग ( State Human Rights Commission )

राज्य मानवाधिकार आयोग

✍️ जो अधिकार मनुष्य को बिना भेदभाव के सार्वभौमिक रूप से प्राप्त हो, उसे मानवाधिकार कहा जाता है ।
                                                 अर्थात गरिमापूर्ण जीवन के लिए, जो सार्वभौमिक अधिकार प्राप्त होते हैं, वही मानव अधिकार है ।

✍️ 1946 को एल्लोर रुजवेल्ट की अध्यक्षता में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई।

✍️10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की गई ।

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम : 1993 

✍️ इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। 

🇮🇳 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 12 अक्टूबर 1993 
📝राजस्थान मानवाधिकार आयोग 18 जनवरी 1999

राजस्थान मानवाधिकार आयोग

गठन :– 18 जनवरी, 1999

कार्य प्रारम्भ :– 23 मार्च, 2000

✍️ यह राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर कार्यवाही कर सकता हैं।

✍️ यह एक सांविधिक/ वैधानिक संस्था हैं।

संरचना :– 

• प्रारम्भ में – 1 अध्यक्ष + 4 सदस्य

• 2006 से – 1 अध्यक्ष + 2 सदस्य 

• वर्तमान में 2019 से संशोधन के पश्चात्  –

1 अध्यक्ष + 2 सदस्य + 1 महिला सदस्य

Total – 4

योग्यता :– 

✍️ High court ke सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाया जाता हैं।

2 सदस्य 1 सदस्य High court का न्यायाधीश या न्यूनतम 7 वर्ष के अनुभव वाला जिला न्यायाधीश रहा हो

1 सदस्य ऐसा व्यक्ति जो मानवाधिकार का ज्ञाता हो।

1 महिला सदस्य जो मानवाधिकार की ज्ञाता हो।

नियुक्ति :–

✍️ राज्यपाल द्वारा चयन समिति की सिफारिश पर, जिसमे 

• CM

• विधानसभा अध्यक्ष

• गृहमंत्री

• विधानसभा में विपक्ष का नेता

✍️ चयन समिति के अध्यक्ष CM होते हैं।

कार्यकाल :– 

✍️ 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो।

NOTE :- कार्यकाल पहले 5 वर्ष या 70 की आयु हुआ करता था, जिसे 2019 में संशोधित करके 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु कर दिया गया।

NOTE :- यदि आयु 70 से कम हैं तो पुनः नियुक्ति भी की जा सकती हैं।

✍️ यदि अध्यक्ष की मृत्यु पदत्याग या अन्य कारण हो तो सदस्य अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकता हैं।


त्यागपत्र :– स्वयं हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा राज्यपाल को। 

हटाया जाना :– 

✍️ कदाचार या असमर्थता के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय जांच करेगा तथा जांच के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाता हैं।

Note :- यह राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त नहीं होता हैं।


कार्य :–

• मानव अधिकारों का संरक्षण करना ।

• मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित मामलों की जांच करना।

 • समय-समय पर जेल का निरीक्षण करना ।

• हिरासत में मृत्यु या फर्जी एनकाउंटर की जांच करना ।

• महिला / SC / ST के भेदभाव की जांच करना ।

• मानवाधिकार क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास करना।

 नोट :– यह 1 वर्षीय पुराने मामलों की जांच नहीं कर सकता।

 ✍️ राज्य मानवाधिकार आयोग को दीवानी अदालत की शक्तियां प्राप्त है।

 प्रथम अध्यक्ष – कांता भटनागर

 वर्तमान अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास 

सदस्य 

• महेश गोपाल 

• जस्टिस राम सिंह झाला ।


Telegram



राज्य निर्वाचन आयोग ( State Election Commission)

राज्य निर्वाचन आयोग 

Article 243K :- पंचायती राज संस्थाओं हेतु।

Article 243ZA :- नगर निकायों हेतु।

✍️ राज्य में पंचायतीराज तथा नगर निकायों के चुनाव संपादित करवाने हेतु राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना की गईं।

✍️ राज्य निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त स्वतंत्र तथा संवैधानिक संस्था हैं इसका केन्द्रीय निर्वाचन आयोग से कोई संबंध नहीं है।

✍️ यह एक सदस्यीय आयोग है – राज्य निर्वाचन आयुक्त।

नियुक्ति :– राज्यपाल

त्यागपत्र :– राज्यपाल

✍️ यह राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त नहीं होते अर्थात् इन्हें राज्यपाल नहीं हटा सकता।
✍️ इन्हे हटाने की प्रक्रिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है
इस प्रक्रिया के तहत संविधान के उल्लंघन का दोषी पाए जाने पर राष्ट्रपति पद मुक्त करेगा।

कार्यकाल :– 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु

कार्य :–

• पंचायतीराज/नगर निकायों के निर्वाचन
• आचार संहिता लगाना तथा उनका पालन करवाना
•  मतदाता सूची update करना।
• चुनाव तिथियों की घोषणा करना
• पोलिंग पार्टी तथा पोलिंग बूथ का गठन करना।

अधिकार :–

1. चुनाव सम्बन्धी शिकायत से संतुष्ट होने पर चुनाव स्थगित कर सकता हैं।

2. मतदान केन्द्र पर हिंसा, कब्ज़ा या अपारदर्शिता हो जाए, तो पुनः चुनाव करवा सकता है।

3. इनसे संबंधित वाद को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

गठन :– 1 July, 1994

H.Q. (मुख्यालय) :–  Jaipur 

राज्य निर्वाचन आयुक्त :–

1. अमरसिंह राठौड़
2. N.R. भसीन 
3. इंद्रजीत खन्ना 
4. अशोक कुमार पाण्डे
5. रामलुभाया 
6. प्रेमसिंह मेहरा 
7. मधुकर गुप्ता (वर्तमान)


✍️ राज्य में पहली बार पंचायत चुनाव 1960 में (पंचायती राज विभाग द्वारा)

✍️ राज्य में पहली बार शहरी निकाय चुनाव 1960 (स्थानीय नगरीय विभाग द्वारा)

✍️ राज्य निर्वाचन आयोग ने 1995 में प्रथम बार पंचायती राज तथा नगर निकायों का चुनाव करवाया।

राजस्थान की प्रमुख नीतियां

राजस्थान सरकार की प्रमुख नीतियां


 
⋙ राजस्थान की प्रथम राज्य महिला नीति :-
8 मार्च 2000
नवीनतम राजस्थान राज्य महिला नीति :-
11 अप्रैल 2021 (कस्तूरबा जयंती पर)
लक्ष्य - 2030 सतत विकास

M - सैंड नीति नीति :-
     25 जनवरी 2021
राजस्थान M (manufacturing) - सैंड नीति जारी करने वाला भारत का पहला राज्य बना

 राजस्थान पर्यटन नीति :-
27 सितंबर 2001
राजस्थान पर्यटन नीति जारी करने वाला भारत का पहला राज्य बना
नवीन पर्यटन नीति अधिसूचना  :- 9 सितंबर 2020 को जारी
गेस्ट हाउस स्कीम :  16 अप्रैल 2021
पेइंग गेस्ट हाउस स्कीम : 21 अक्टूबर 2021

⋙ प्रथम सौर ऊर्जा नीति :-
13 अप्रैल 2011
राजस्थान सौर नीति जारी करने वाला भारत का पहला राज्य
नवीन सौर ऊर्जा नीति 2019
18 दिसंबर 2019
लक्ष्य :- नवीन सौर ऊर्जा नीति का लक्ष्य 2024 तक 30000 मेगावाट ऊर्जा सौर ऊर्जा के माध्यम से उत्पादन करना है

 प्रथम पवन ऊर्जा नीति : 2012

 ⋙ नवीन पवन और हाइब्रिड ऊर्जा नीति :-
18 दिसंबर 2019

 इको टूरिज्म नीति :-
15 जुलाई 2021

 सिलिकोसिस नीति :-
3 अक्तूबर 2019

सिलिकोसिस नीति जारी करने वाला भारत का पहला राज्य हरियाणा जबकि दूसरा राजस्थान है

 प्रथम वन नीति :-
फरवरी 2010
राजस्थान पहला राज्य था जिसने अपनी स्वयं की वन नीति अपनाई

 सड़क विकास नीति - 2013
प्रथम - 1994
राजस्थान पहला राज्य था जिसने अपनी स्वयं की सड़क विकास नीति अपनाई

 नवीनतम खनिज नीति (पांचवी) :-
4 जून 2015
प्रथम खनिज नीति - 1978

🛑 राजस्थान पशुधन एवं डेयरी विकास नीति  :- 2019
मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना

राजस्थान कृषि प्रसंस्करण व्यवसाय निर्यात एवं प्रोत्साहन नीति:-
17 दिसंबर 2019

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020:-
22 जुलाई 2020 को नई नीति लागू की गई
प्रारूप तैयार किया :  के कस्तूरीरंगन
नई शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला राज्य हिमाचल प्रदेश है

🛑 राजस्थान एथेनॉल प्रोडक्शन नीति :-
15 दिसंबर 2021 से लागू
केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करने के लिए पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने  की मजूरी दी है वर्तमान में 10% एथेनॉल मिलाया जा रहा है

🛑 फिल्म पर्यटन प्रोत्साहन नीति
8 अप्रैल 2022 

🛑 राजस्थान MSME नीति :-
17 सितंबर 2022 को लागू
राजस्थान MSME दिवस 17 सितंबर को मनाया जाता है
करौली जिले को वर्ष 2022 में एमएसएमई क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है

🛑 राजस्थान औद्योगिक विकास नीति :-
1 जुलाई 2019 से लागू

Thursday, 19 January 2023

राजस्थान की जलवायु (Rajasthan Climate)

 राजस्थान की जलवायु

 (Rajasthan Climate)

राजस्थान की जलवायु प्रदेश वर्गीकरण 

कोपेन का वर्गीकरण वनस्पति के आधार पर 

वर्षा, तापमान 


1. BWhw(उष्णकटिबंधीय मरुस्थल जलवायु प्रदेश) :-

जिले – जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, पश्चिमी जोधपुर 
प्रतिनिधि जिला – बीकानेर
• वर्षा – 10 से 20 सेमी.

2. Bshw (उष्णकटिबंधीय अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश) :-

जिले – बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, पाली, जालौर, सीकर, चूरू, झुंझुनू, सिरोही 
प्रतिनिधि जिला – नागौर 
• वर्षा 20 से 40 सेमी.

3. CWg ( उष्णकटिबंधीय उपआर्द्र जलवायु प्रदेश :-

जिले – मध्य पूर्वी राजस्थान क्षेत्र (  अजमेर जयपुर टोंक करौली दौसा  सवाई माधोपुर भीलवाड़ा भरतपुर अलवर धौलपुर )
प्रतिनिधि नगर – टोंक
• वर्षा 40 से 80 सेमी

4. AW उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश :- 

विस्तार :- दक्षिणी दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र (डूंगरपुर बांसवाड़ा कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, प्रतापगढ़)
प्रतिनिधि – बांसवाड़ा 
• वर्षा – 80 से अधिक 


थॉर्टवेट का वर्गीकरण वर्षा तापमान वनस्पति वाष्पीकरण
 

Wednesday, 18 January 2023

राजस्थान की झीलें

राजस्थान की झीलें : 



• राजस्थान में सर्वाधिक झीलें – उदयपुर में 

राजस्थान की मीठे पानी की झीलें :-

• जयसमंद झील – उदयपुर
• पिछोला झील – उदयपुर 
• फतेहसागर झील – उदयपुर
• उदय सागर झील – उदयपुर 
• नक्की झील – माउंट आबू सिरोही 
• राजसमंद झील – राजसमंद 
• नंदसमंद झील – राजसमंद 
• आनासागर झील – अजमेर 
• फॉयसागर झील – अजमेर 
• पुष्कर झील – अजमेर 
• गजनेर झील – बीकानेर 
• कोलायत झील – बीकानेर 
• कायलाना झील – जोधपुर
• बालसमंद झील – जोधपुर 
• सिलीसेढ़ झील – अलवर 
• तालाब-ए-शाही झील – धौलपुर 
• अमर सागर झील – जैसलमेर 
• गढ़सीसागर झील – जैसलमेर

राजस्थान की खारे पानी की झीलें :-

• सांभर झील – जयपुर 
• डीडवाना झील – नागौर 
• नावां झील – नागौर
• डेगाना झील – नागौर 
• कुचामन झील – नागौर 
• पचपदरा झील – बाड़मेर 
• लूणकरणसर झील – बीकानेर 
• कावोद झील – जैसलमेर 
• रेवासा झील – सीकर
• काछोरा झील – सीकर 
• फलोदी झील – जोधपुर 
• तालछापर झील – चूरू 

राजस्थान की मीठे पानी की झीलें :–

1 जयसमगंद झील ( उदयपुर)
•  निर्माता-  महाराज जयसिंह
•  निर्माण काल-  1685- 1691
•  नदी-  गोमती
•  जयसमंद झील पर “7  टापू” स्थित है। 
•  इस  झील पर स्थित सबसे  बड़े टापू का नाम “बाबा का भाखड़ा”  है।
• सबसे छोटे टापू को “प्यारी” के नाम से जाना जाता है । 
• इन  टापू पर रहने वाली जनजाति भील मीणा  जनजाति है। 
•  जयसमंद झील राजस्थान की मानव निर्मित सबसे बड़ी झील है। 
•  ताजमहल पर रूठी रानी का महल इस झील के किनारे चित्रित है। 
•  इसे “जलचरओं की बस्ती”  कहा जाता है। यहां पर सर्वाधिक जलीय जीव पाए जाते हैं। 
•  श्यामपुर –  भाट नेहरे:- सिंचाई के लिए जयसमंद झील से निकली गई है। 

2 नक्की झील ( माउंट आबू)
•  निर्माण-  लोक कहावतों के अनुसार देवताओं के नाखूनों द्वारा हुआ है। 
•  यह एक क्रेटर झील है अर्थात ज्वालामुखी झील। 
•  राजस्थान की सबसे ऊंची झील नक्की झील मानी जाती है इसकी ऊंचाई 1200 मीटर है। 
•  यह झील राजस्थान में जमने वाली एकमात्र झील  है। 
•   इसे राजस्थान की सबसे गहरी झील(35 मी) कहते हैं। 
•  इसके पास पाई जाने वाली चट्टाने निम्न है। 
1 टॉड रॉक – मेंढक जैसी चट्टान।
2  नंदी रॉक –  शिव के बैल जैसी चट्टान।
3  नन रॉक – घुंघट कूड़े दुल्हन जैसी चट्टान।
•  हिल स्टेशन वाली झील कही जाती है यहां का सनसेट पॉइंट( सूर्यास्त) बहुत प्रसिद्ध है। 
•  गरासिया जनजाति  अस्थियों का विसर्जन इसी झील में करती है। 

3 राजसमंद झील (राजसमंद) :-
• निर्माता-  राजसिंह
•  निर्माण कार्य- 1662 ई
•  नदी-  गोमती
•  इस झील के निर्माण में सर्वाधिक लोगों का(60,000) योगदान है। 
•  इस दिल के किनारे 25 काले रंग के संगमरमर के शिलालेख स्थित है। 
• ” नौ चौकी पाल” ( सीढ़ियां)  राजसमंद झील में है। 
•  इन पर मेवाड़ का इतिहास रणछोड़ भट्ट तैलंग द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया है।  जिसमें मेवाड़ के बप्पा रावल से राजसिंह तक का इतिहास है। 
•  द्वारकाधीश मंदिर और घेवर माता की छतरी इसी जिले के किनारे निर्मित है। 
• हाल ही में इस झील के किनारे सूर्य घड़ी के अवशेष मिले हैं। 

4  पिछोंला झील (उदयपुर) 
• निर्माण-  1388 ई
• निर्माता-  बंजारा( राणा लाखा के समय)
• नदी-  सिसारमा, बुझड़ा। 
• शाहजहां ने अपने विद्रोह काल में इसी झील पर शरण ली थी। 
• महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने पिछोला झील में जगनिवास नामक महल बनवाए
• जगमंदिर से प्रेरित होकर शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण कराया था। 
• स्वरूप सागर नहर पिछोला और फतहपुर को जोड़ती है। 
• पिछोला का अतिरिक्त पानी फतहनगर में जाता है। 
• सौर ऊर्जा द्वारा संचालित प्रथम नाव इसी झील में चलाई गई थी। 
• पिछोला में प्रसिद्ध निर्माण:–
1 जगमंदिर –  जगत सिंह प्रथम
2 जग निवास –  जगत सिंह द्वितीय
3 नटनी का चबूतरा (राणा लाखा)

5 फतेह सागर ( उदयपुर)
•  निर्माण-   महाराजा जयसिंह (1688)
•  पुनः निर्माण –  फतेह सिंह ( 1888)
•  नदी –  सिसीरमा,बुझड़ा 
• उपनाम-  ड्यूक ऑफ कनॉट, देवाली तालाब, कनॉट बांध
• फतेह सागर में प्रसिद्ध :-
1 नेहरू उद्यान
2  सौर ऊर्जा वेधशाला- इस झील के पास गुजरात के सहयोग से बनाई गई है। 
3  टेलीस्कोप- इस झील के पास बेल्जियम के सहयोग से बनाया गया है।  

6  उदय सागर( उदयपुर)
•  निर्माता-  उदय सिंह
•  निर्माण काल-  1559
•  नदी –  आयड नदी
• आयड नदी  उदय सागर में गिरने के बाद बेडच कहलाती है। 




राजस्थान की खारे पानी की झीलें :–

सांभर झील

पचपदरा झील




राजस्थान के वन्यजीव अभयारण्य

राष्ट्रीय उद्यान :- 3



1. रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान : सवाई माधोपुर 

• अभ्यारण के रूप में स्थापना - 1955
• टाइगर प्रोजेक्ट प्रारंभ - 1973 
• राष्ट्रीय उद्यान घोषित - 1 नवंबर, 1980 
• राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान
• प्रथम टाइगर प्रोजेक्ट 
• भारतीय बाघों का घर कहलाता है

भाग स्थानांतरण -
              रणथंभौर से सरिस्का 2008 
                    बाघ - सुल्तान
                   बाघिन - बबली 

प्रसिद्ध मछली - बाघिन,  
                        जिस पर टाइगर क्वीन के नाम से फिल्म बनाई गई।

दर्शनीय स्थल - त्रिनेत्र गणेश मंदिर 
                       जोगी महल 
                       कुत्ते की छतरी 

• लाल सिर वाले तोते यहां पाए जाते हैं।
• दुर्लभ जाति का काला गरुड़ राजस्थान में केवल इसी अभ्यारण में है।
• क्षेत्रफल - 282 वर्ग किलोमीटर

2. केवलादेव घना पक्षी विहार :- भरतपुर

क्षेत्रफल - 28.73 वर्ग किलोमीटर
• अभयारण्य का दर्जा - 1956 
• राष्ट्रीय उद्यान घोषित - अगस्त,1981
• पक्षी प्रजातियों की सर्वाधिक विविधता इसी अभ्यारण में है, अतः इसे पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है।
• 1985 में इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
• केवलादेव घना पक्षी विहार में नवंबर से फरवरी माह तक साइबेरियन सारस आते हैं।
• राजस्थान का प्रथम - रामसर स्थल/ नमभूमि / वेटलैंड 
• लाल गर्दन वाले तोते यहां पाए जाते हैं।
• यहां पाइथन पॉइंट हैं,जहां अजगर देखे जाते हैं।
• केवलादेव घना पक्षी विहार में अजान बांध से पानी की आपूर्ति होती है।

• प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी - डॉक्टर सलीम अली की कर्म स्थली है।


3. मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान :-

• पुराना नाम - दर्रा अभयारण्य

नाम परिवर्तन -
• 2003 में राजीव गांधी नेशनल पार्क 
• 2006 में मुकुंदरा हिल्स मुकुंदरा हिल्स

• अभ्यारण दर्जा - 1955 
• राष्ट्रीय उद्यान घोषित - 9 जनवरी, 2012 
• राजस्थान की तीसरी टाइगर परियोजना - अप्रैल 2013
• पुरातत्व संबंधी - आदिमानव साक्ष्य, शैल चित्र यहां मिलते हैं ।
• गागरोनी तोते (हीरामन या हिंदुओं का आकाश लोचन) पाए जाते हैं।
• क्षेत्रफल - 274‌ वर्ग किलोमीटर जिसमें से 199 वर्ग किलोमीटर राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र का हिस्सा है।
• मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व ( कोटा बूंदी झालावाड़ चित्तौड़ )
• अबली मीणी का महल

राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य :- 27

1. राष्ट्रीय मरू उद्यान :-
• बाड़मेर जैसलमेर बाड़मेर
• क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य
• स्थापना मई 1981
• लाठी सीरीज इसी अभयारण्य में है
• सेवण घास
• यह अभयारण्य गोडावण की शरण स्थली कहलाता है। 
• यहां प्रोजेक्ट great Indian bustard 2013 चलाया गया।
• आकल वुड फालिस्क पार्क (जीवाश्म उद्यान)।
• पीवणा सांप सर्वाधिक ।

2. सरिस्का ‘अ' अभ्यारण्य :- अलवर
• राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य
• केवल 3.01 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में।

3. दर्रा वन्यजीव अभ्यारण्य :- कोटा, झालावाड़ 
• यह अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान उद्यान एवं Tiger project दोनों का भाग है।

4. सवाई मानसिंह अभ्यारण्य :- सवाई माधोपुर
• 1993 में अभयारण्य घोषित
• 113 वर्ग किलोमीटर
• चिड़ीखोर नामक पर्यटन स्थल।

5. कैलादेवी अभ्यारण्य :- करौली + सवाई माधोपुर 
• 1983
• धोकड़ा वनों का विस्तार 
• क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा राजस्थान का बड़ा अभ्यारण्य। 
• 1993 में रणथंभौर Tiger Reserve का भाग बना।

6. कुंभलगढ़ अभ्यारण्य :- राजसमंद + पाली + उदयपुर
• चंदन के वन  
• स्थापना - 1971 
• भेड़ियों की प्रजनन स्थली / लोमड़ियों
• रणकपुर जैन मंदिर।

7. टॉडगढ़ रावली अभ्यारण्य :-
अजमेर + पाली + राजसमंद 
• कर्नल टॉड के नाम पर 
• रीछ व जरखों के लिए प्रसिद्ध है 
• एक पात्र अभिनय जो 3 संभागों में फैला है ।

8. सीतामाता अभ्यारण :-
चित्तौड़ + प्रतापगढ़ + उदयपुर
• चीतल की मातृभूमि के नाम से प्रसिद्ध 
• सागवान वन
• उड़न गिलहरियों के लिए प्रसिद्ध 
• एंटीलौप चौसिंगा पाया जाता है , जिसे स्थानीय भाषा में भेड़ल / घण्टेल कहा जाता है ।
• राजस्थान का सर्वाधिक जैव विविधता वाला अभ्यारण्य।

9. रामगढ़ विषधारी :-
स्थापना - 1982 
बूंदी - नैनवा रोड पर 
• रणथंभोर के बाघों का जच्चा घर कहता है ।
• पाइथन / अजगर की शरण स्थली 
• धोंकड़ा वन 
• राजस्थान का चौथा टाइगर रिजर्व 

10. माउंट आबू अभ्यारण्य :- सिरोही
• राजस्थान में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित अभ्यारण्य 
• 100 + दुर्लभ  जंतु
• जंगली मुर्गे
• यूब्लेफेरिस (सबसे सुंदर छिपकली)
• ग्रीन मुनिया (चिड़िया)
• दुर्लभ वनस्पति - “डिकील्पटेरा”
                          आबू ऐंसिस भी पाई जाती है।
   
• 25 जून 2009 में माउंट आबू को पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र ( Eco sensitive zone ) घोषित किया।

11. चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य :-
 • 5 जिलों - कोटा + बूंदी + सवाई माधोपुर + करौली + धौलपुर ।
तीन राज्य - राजस्थान + उत्तर प्रदेश + मध्य प्रदेश
• 1979 में चंबल नदी पर
• गांगेय सूंस (विशिष्ट स्तनपायी जीव )
• देश का एकमात्र नदी अभ्यारण्य 
• घड़ियालों का संसार
• जलीय जीवो की प्रजनन स्थली।

12. भैंसरोड़गढ़ अभ्यारण्य :- चित्तौड़गढ़
1983 में अभ्यारण्य दर्जा।
• * राणा प्रताप सागर बांध के पास।

13. बन्ध बारेठा :- भरतपुर 
• उपनाम - परिन्दों का‌ घर
• जरखों के लिए प्रसिद्ध।

14. बस्सी अभ्यारण्य :- *चित्तौड़गढ़
• “ चीतल की चहल - पहल ” उपनाम से प्रसिद्ध।
• बामनी व औराई नदियां इसके पास 

15. जवाहर सागर अभ्यारण्य :- Bundi + चित्तौड़ + कोटा
घड़ियालो‌‌ का प्रजनन केन्द्र।

16. शेरगढ़ अभ्यारण्य :- बारां
* सांपों की शरणस्थली 

17. जयसमंद अभ्यारण्य :- उदयपुर
• उपनाम* - जलचरों की बस्ती 

18. नाहरगढ़ अभ्यारण्य :- Jaipur
2006 में यहां Elephant Safari शुरू।
• *राजस्थान का तीसरा जैविक उद्यान।
• *भालू बचाव केन्द्र (Bear rescue center) 

19. वन विहार अभ्यारण्य :- धौलपुर
• आगरा - धौलपुर - मुम्बई राजमार्ग पर।

20. केसरबाग अभ्यारण्य :- धौलपुर 

21. ताल छापर अभ्यारण्य :- Churu
• काले हिरणों की शरणस्थली
• राजस्थान का तीसरा छोटा अभ्यारण्य। 

22. सज्जनगढ़ अभ्यारण्य :- उदयपुर
राजस्थान का दूसरा छोटा अभ्यारण्य 
राजस्थान का पहला जैविक उद्यान (2015)

23. रामसागर अभ्यारण्य :- धौलपुर 

24. सवाई माधोपुर अभ्यारण्य :- सवाई माधोपुर

25. गजनेर अभ्यारण्य :- Bikaner 
• बटबड़ पक्षी / रेत का तीतर / इम्पीरियल सेण्ड ग्राउज


26. सरिस्का अभ्यारण्य :- अलवर
• स्थापना - 1955
• * हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध
• राजस्थान का दूसरा Tiger Reserve (1978)
• भर्तृहरि मंदिर (कनफटे नाथों की शरणस्थली)
• पांडुपोल मंदिर
• नौगजा जैन मंदिर।

27. फुलवारी की नाल :- उदयपुर 
• प्रथम Human anatomy park
• महाराणा प्रताप की कर्मस्थली।
• मानसी - वांकल नदियां।




राजस्थान मृगवन :-7



1. चित्तौड़गढ़ मृग वन : चित्तौड़ 
• राजस्थान का सबसे प्राचीन  
• मृगवन स्थापना - 1969

2. सज्जनगढ़ मृगवन : उदयपुर 
स्थापना - 1984
सज्जनगढ़ दुर्ग की तलाशी में तलहटी में  

3.पुष्कर मृगवन : पंचकुंड, अजमेर 
स्थापना - 1985 

4.माचिया सफारी मृगवन : जोधपुर
• 1985
• कायलाना झील के पास 

5.अशोक विहार : जयपुर 
• स्थापना - 1986 

6.संजय उद्यान : शाहपुरा, जयपुर 
• स्थापना - 1986 

7.अमृता देवी निर्गुण मृगवन : खेजड़ली , जोधपुर
• स्थापना - 1994 
• राजस्थान का सबसे नवीनतम मृगवन

बायोलॉजिकल पार्क – 5


1. सज्जनगढ़ biological park - उदयपुर (12 अप्रेल, 2015 लोकार्पण)
• प्रथम biological park

2. माचिया सफारी biological park :- जोधपुर (20 जनवरी, 2016 लोकार्पण)
• द्वितीय biological park 

3. नाहरगढ़ biological park :- जयपुर (4 जून, 2016 लोकार्पण)

निर्माणाधीन :-

4. अभेड़ा biological park :- कोटा (नांता) 

5. मरुधरा biological park :- बीकानेर (बीछवाल) 

आखेट निषिद्ध क्षेत्र :- 33



1. डोली – जोधपुर 
2. लोहावट –जोधपुर 
3. गुढ़ा बिश्नोई – जोधपुर 
4. 73 – जोधपुर 
5. फिट कासनी – जोधपुर 
6. जंभेश्वर जी – जोधपुर 
7. देचू – जोधपुर
8. धोरीमना – जोधपुर 

9. रामदेवरा – जैसलमेर 
10. उज्जला – जैसलमेर 

11. देशनोक – बीकानेर
12.  जोड़बीड़ – बीकानेर 
13. बज्जू – बीकानेर
14. दियातरा – बीकानेर 
15. मुकाम – बीकानेर 
16. संवत्सर – बीकानेर 

17. सेंट्रल सागर – दोसा 
18. महिला – जयपुर 
19. बदोत – अलवर 
20. जोड़ियां – अलवर 
21. रानीपुरा – टोंक
22. कव्वाल जी – सवाई माधोपुर 
23. कनक सागर – बूंदी 
24. सोरसन – बारां 
25. बागबेड़ा – उदयपुर
26. सुखलिया – अजमेर 
27. गगवाना – अजमेर 
28. तिलोरा – अजमेर  
29. मेनाल – भीलवाड़ा 
30. जरोदा – नागौर 
31. रोटू – नागौर 
32. सांचौर – जालौर
33. जवाई बांध – पाली 







राजस्थान के कन्जर्वेशन रिजर्व :- 20



1. बिसलपुर कन्जर्वेशन रिजर्व - टोंक
13-10-2008
• पहला Conservation Reserve

2. जोहड़बीड गढ़वाल कन्जर्वेशन रिजर्व - बीकानेर 
3. सुन्धामाता कन्जर्वेशन रिजर्व - जालौर
4. गुढ़ा विश्नोई कंजर्वेशन रिजर्व - जोधपुर
5. शाकम्भरी कंजर्वेशन रिजर्व - सीकर , झुंझुनू
6. गोगेलाव कंजर्वेशन रिजर्व - नागौर
7.रोटू कंजर्वेशन रिजर्व - नागौर
8. उम्मेदगंज पक्षी विहार कंजर्वेशन रिजर्व - कोटा
9. जवाई बांध लियोपार्ड कंजर्वेशन रिजर्व - पाली
10. जवाई बांध  कंजर्वेशन रिजर्व II - पाली
11. बीड कंजर्वेशन रिजर्व - झुंझुनू
12. बासी हाल खेतड़ी कंजर्वेशन रिजर्व - झुंझुनू
13. बस यार खेत्री बागोर कंजर्वेशन रिजर्व - झुंझुनू
14. मनसा माता कंजर्वेशन रिजर्व - झुंझुनू
15. रणखार कंजर्वेशन रिजर्व - जालौर
16. शाहबाद कन्जर्वेशन रिजर्व - बारां‌‌
17. शाहबाद तलहटी कन्जर्वेशन रिजर्व - बारां
18. बीड़ घास फुलिया खुर्द कन्जर्वेशन रिजर्व - भीलवाड़ा
19. बाघदर्रा क्रोकोडाइल कन्जर्वेशन रिजर्व - उदयपुर
      (अधिसूचना - 30 नवंबर 2022)
20. वाड़ाखेडा‌ कन्जर्वेशन रिजर्व - सिरोही 
       (अधिसूचना - 27 दिसंबर 2022)
21. झालाना – आमागढ़ लेपर्ड रिजर्व (जयपुर)
22. कुंजी सुंवास कंजर्वेशन रिजर्व -- बारां (रामगढ़) (नवीनतम)



4 नए conservation रिज़र्व बनने के बाद -

✍️ सबसे बड़े conservation रिज़र्व 

 1.शाहबाद के जंगल (189.39 वर्ग km)  
2. शाहबाद तलहटी (178.84 वर्ग km)

 ✍️ सबसे छोटे conservation रिज़र्व  

1. रोटू 0.72 (वर्ग km)
2. बीड घास फूलियाखुर्द (0.85 वर्ग km)



राजस्थान के जिला शुभंकर

अलवर - सांभर

• भरतपुर - साइबेरियन सारस

• करौली - घड़ियाल

• धौलपुर - पंछीरा 

• सवाईमाधोपुर - बाघ

• जैसलमेर - गोडावण

• जोधपुर - कुरजां पक्षी

• बाडमेर - मरू लोमडी

• बीकानेर - भट्ट तीतर 

• श्रीगंगानगर - चिंकारा 

• हनुमानगढ़ - छोटा किलकिल

• चुरू - काला हिरण 

• झुंझुनू - काला तीतर

• सीकर - शाहीन (बाज)

• बारां - मगरमच्छ

• कोटा - ऊदबिलाव 

• बूंदी - सुर्खाब

• झालावाड - गागरोनी तोता

• बांसवाडा - जलपीपी 

• डूंगरपुर - जंगली धोक

• प्रतापगढ़ - उड़न गिलहरी

• जयपुर - चीतल

• दौसा - खरगोश

• अजमेर - खड़मौर

• टोंक - हंस

• राजसमंद - भेड़िया 

• भीलवाडा - मोर

• चितौड़गढ- चौसिंगा 

• नागौर - राजहंस

• पाली - तेंदुआ

• जालौर - भालू

• सिरोही - जंगली मुर्गे 

• उदयपुर - बिज्जू


कैलाश सांखला

• Jodhpur निवासी
• Tiger man of India
• Rajasthan में बाघ परियोजना के जन्मदाता
• पद्मश्री 1992
• Books :- 
                1. A Story Of Indian Tiger
                2. The Tigers
                3. Return Of the Tiger.

Most Loved

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं✍

IndiaEnotes राजस्थान की प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं✍ प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ ● राजस्थान राज्य के लोक निर्माण विभाग से अलग होने के बाद 14 सितम...