राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प कलाएं
• हाथों के द्वारा कलात्मक व आकर्षक वस्तुएं बनाना हस्तशिल्प कला कहलाती है।
• राजस्थान में हस्तशिल्प कला का सबसे बड़ा केंद्र बोरानाडा जोधपुर में है ।
• राजस्थान औद्योगिक नीति - 1988
• इस नीति में हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया गया ।
1. ब्लॉक प्रिंटिंग :– हाथ से कपड़े पर छपाई ।
✍️ प्रमुख केंद्र :-
• बालोतरा बाड़मेर
• बाड़मेर
• सांगानेर जयपुर
• बगरू जयपुर
• आकोला चित्तौड़गढ़
✍️ कपड़े पर हाथों से परंपरागत तरीके से छपाई करना ब्लॉक प्रिंटिंग छपाई कहलाती है।
✍️ ब्लॉक प्रिंटिंग करने वालों को छीपे कहा जाता है।
✍️बाड़मेर में खत्री परिवार के लोग इस कला में दक्ष है ।
✍️ सांगानेर में नामदेव के छीपे प्रसिद्ध है।
अजरक प्रिंट - बालोतरा बाड़मेर
• नीले एवं लाल रंग का प्रयोग ।
मलेर प्रिंट - बाड़मेर
• कत्थई व काले रंग का प्रयोग।
जाजम प्रिंट - अकोला चित्तौड़गढ़
• लाल हरे रंग का प्रयोग ।
दाबू प्रिंट - आकोला चित्तौड़गढ़
• लाल व काले रंग का विशेष प्रयोग।
सांगानेरी प्रिंट - सांगानेर जयपुर
•प्राकृतिक रंगों का प्रयोग।
कशीदाकारी कला
• धागों से हाथों के द्वारा कपड़े पर कलात्मक एवं आकर्षक डिजाइन बनाना कशीदाकारी कला कहलाती है।
• प्रमुख केंद्र - बाड़मेर , जैसलमेर , जालौर
बंधेज कला
• मूलत: मुल्तान की कला
• कपड़ों पर रंग चढ़ाने की एक तकनीक बंधेज कला का लाती है।
• बंधेज कला का सर्वप्रथम उल्लेख बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्त नामक ग्रंथ में मिलता है।
• बंधेज कार्य के लिए जोधपुर के तैय्यब खान को पदमश्री पुरस्कार मिला ।
• राजस्थान में बंधेज चढ़ाने का कार्य चड़वा जाति के द्वारा किया जाता है ।
• प्रमुख केंद्र - जोधपुर, जयपुर, सुजानगढ़ (चूरू), शेखावटी
पोमचा :- जच्चा स्त्री का वस्त्र
• पोमचा वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है ।
• प्राय: पोमचा पीले रंग का होता है।
• पुत्र के जन्म पर पीले रंग & पुत्री - गुलाबी रंग का पोमचा
ननिहाल पक्ष द्वारा लाया जाता है।
• हाडोती क्षेत्र में विधवा महिलाएं महिलाएं काले रंग की ओढ़नी ओढ़ती है, जिसे चीड़ का पोमचा कहा जाता है।
• राजस्थान में जयपुर का पोमचा प्रसिद्ध है।
• मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत ग्रंथ में पोमचा का उल्लेख मिलता है ।
लहरिया :- राजस्थान में जयपुर का प्रसिद्ध विवाहित महिलाएं श्रावण मास वह तीज त्योहार के अवसर पर लहरदार ओढ़नी ओढ़ती है, जिसे लहरिया कहा जाता है।
• रंग 3 का लहरिया
• पचरंगा लहरिया
• सतरंगी लहरिया
प्रकार -
खत, पाटली, जालदार, पलू, नगीना, फोहनीदार, पचलड।
मोठड़ा :-
• राजस्थान में मोठडा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
• लहरिया की लहरदार धारियां जब एक दूसरे को काटती है तो उसे मोठड़ा कहा जाता है।
चुनरी :-
• बूंदों के आधार पर बनी बंधेज डिजाइन चुनरी कहलाती है
• जयपुर, जोधपुर, सुजानगढ़ (चूरू), मेड़ता (नागौर)
मूर्तिकला
• राजस्थान में मूर्तिकला का सर्वाधिक कार्य जयपुर में होता है।
• लाल रंग की मूर्तियां - अलवर
• सफेद संगमरमर की मूर्तियां - किशनगढ़ अजमेर
• काले रंग की मूर्तियां - तलवाड़ा (बांसवाड़ा)
ब्लू पॉटरी
• यह कला मूलतः ईरान या पर्शिया की है , जो मुगल दरबार होते हुए राजस्थान में सर्वप्रथम आमेर में मिर्जा राजा मानसिंह के काल में आईं।
• चीनी के बर्तनों पर विभिन्न रंगों का प्रयोग करके डिजाइन बनाई जाती है - हरे, नीले, काले, सफेद,
• कृपाल सिंह शेखावत - ब्लू पॉटरी कला के जनक
इन्होंने 25 रंगों का प्रयोग करके एक नई पोटरी विकसित की जिसे कृपाल पोटरी कहा गया।
तारकशी के जेवर - नाथद्वारा राजसमंद
• चांदी के तारों से जेवर बनाए जाते हैं।
लाख का काम - जयपुर
• खिलौने, चूड़ियां सजावटी की सामग्री
हाथी दांत का काम - जयपुर
• खिलौने चूड़ियां सजावटी की सामग्री
मृण्मूर्तियां / टेराकोटा पद्धति :- मोलेला गांव राजसमंद
• मिट्टी से छोटी छोटी मूर्तियां बनाने की कला टेराकोटा पद्धति
कोफ्तगिरी कला :- जयपुर
• मूलतः यह कला दमरिक की है जो भारत में सर्वप्रथम पंजाब राज्य में आई ।
• फौलाद की वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जडाई को कोफ्तगिरी कला कहा जाता है ।
कुंदन कला :- जयपुर
• किसी भी स्वर्णिम आभूषण में कीमती पत्थर जोड़ने की कला को कुंदन कला कहा जाता है।
• मूलतः यह कला फारस / ईरान की कला है ।
मीनाकारी कला :- जयपुर
• किसी भी स्वर्ण आभूषण में मीना /नगीना जड़ने की कला को मीनाकारी कला कहा जाता है।
• मूलतः ईरान/ फारस
थेवा कला :-
• प्रतापगढ़ में कांच पर सोने का काम थेवा कला के नाम से प्रसिद्ध है।
• थेवा कला विश्व में केवल प्रतापगढ़ के सोनी परिवार तक ही सीमित है।
• प्रक्रिया :- तैरना
वादा
• जनक - नाथूराम जी सोनी
• प्रायः हरे शीशे पर सोने की नक्काशी करना थेवा कला का लाती है ।
• कागदी टेराकोटा - अलवर
• सरसों का इंजन छाप तेल - भरतपुर
• सरसों का वीर बालक तेल - जयपुर
• दरी उद्योग - टोंक
• नमदा उद्योग - टोंक
• टांकला गांव नागौर - यहां की दरिया प्रसिद्ध है।
• रमकडा़ उद्योग - गलियाकोट ( डूंगरपुर )
• पाव रजाई - जयपुर
• पान मेथी(खुशबूदार) - नागौर
• बादला - जोधपुर ( जिंक धातु से निर्मित शीतल जल का पत्र )
• मोचड़ी उद्योग - जोधपुर
• बडू गांव (नागौर) :- यहां की जूतियां प्रसिद्ध है
• राम कड़ा उद्योग - गलियाकोट डूंगरपुर
• खेल का सामान - हनुमानगढ़
• कृषि के उपकरण - गंगानगर (रायसिंहनगर) और नागौर
• रसदार फल - झालावाड़
• लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर - बाड़मेर
• आम के पापड़ - बांसवाड़ा
• लकड़ी के कवाड़ - बस्सी ( चित्तौड़गढ़ )
• लकड़ी के झूले - जोधपुर
• लकड़ी के खिलौने - चित्तौड़गढ़, उदयपुर, सवाई माधोपुर
• ऊनी कम्बल - गडरारोड (बाड़मेर )
• ब्लैक पॉटरी - कोटा
• कागज़ी पॉटरी - अलवर
• मटकी - बीकानेर
• मिरर वर्क - जैसलमेर
• सूंघनी नसवार - ब्यावर (अजमेर)
• गलीचे उद्योग - बीकानेर & जयपुर
उस्तां कला :- बीकानेर
ऊंट की खाल को मुलायम बनाकर कूप्पा कुप्पिया बनाना तथा उस पर सोने की नक्काशी करना, उस्तां कला कहलाती है।
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