Tuesday, 21 January 2025

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● राजस्थान में महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के पश्चात् सर्वाधिक दुर्गों का निर्माण हुआ है।

● राजस्थान में दुर्गों की स्थापना के विकास का प्रथम आधार कालीबंगा की खुदाई में मिलता है।

● दुर्गों की विशेषताएँ–

1. सुदृढ़ प्राचीरें

2. अभेद्य बुर्जें

3. विशाल परकोटे

4. दुर्ग के चारों ओर गहरी खाई

5. दुर्ग के भीतर जलाशय

6. शस्त्रागार

7. मंदिर निर्माण

8. अन्न भण्डार की स्थापना

9. सुरंग प्रणाली

10. गुप्त प्रवेश द्वार

● कौटिल्य के अनुसार दुर्ग की श्रेणियाँ - 04

1. औदुक दुर्ग

2. पर्वत दुर्ग

3. धान्वन दुर्ग

4. वन दुर्ग

● कौटिल्य के अनुसार राज्य के अंग - 07

1. राजा

2. अमात्य (मंत्री)

3. जनपद

4. दुर्ग

5. कोष

6. सेना

7. मित्र

● राज्य को मानव शरीर का अंग मानते हुए कौटिल्य के अनुसार दुर्ग को शरीर के प्रमुख अंग ‘हाथ’ की संज्ञा दी है।

● शुक्र नीति के अनुसार दुर्गों के प्रकार - 09

(1) एरण दुर्ग - वह दुर्ग, जिसके मार्ग में खाई, काँटो व पत्थरों से युक्त दुर्गम मार्ग हों। उदाहरण - जालोर दुर्ग

(2) औदुक दुर्ग - इसे जल दुर्ग भी कहा जाता है। ऐसा दुर्ग जो विशाल जल राशि से घिरा हुआ हो। उदाहरण - गागरोन दुर्ग।

(3) पारिख दुर्ग - वह दुर्ग, जिसके चारों तरफ बहुत बड़ी खाई हो।

उदाहरण - जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)।

(4) पारिध दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ ईंट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का विशाल परकोटा हो।

उदाहरण - चित्तौड़ दुर्ग, जैसलमेर दुर्ग।

(5) गिरि दुर्ग - किसी उच्च गिरि या पर्वत पर अवस्थित दुर्ग।

उदाहरण - चित्तौड़ दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) आदि।

(6) धान्वन दुर्ग - मरुभूमि (मरुस्थल) में बना दुर्ग।

उदाहरण - जैसलमेर का दुर्ग।

(7) वन दुर्ग - सघन बीहड़ वनों में निर्मित दुर्ग।

उदाहरण - सिवाणा दुर्ग।

(8) सैन्य दुर्ग - खंडों या ईंटों से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग, जहाँ युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक निवास करते हों। इस श्रेणी में लगभग सभी दुर्ग आते हैं। शुक्र नीति के अनुसार सैन्य दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

(9) सहाय दुर्ग (लिविंग फोर्ट) - वह दुर्ग, जिसमें शूरवीर तथा सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते हो।

उदाहरण - जैसलमेर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग

● भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) तथा भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्‌टी से बने दुर्ग हैं।

● राजस्थान के 6 दुर्ग यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल -

1. आमेर दुर्ग

2. गागरोन दुर्ग

3. कुम्भलगढ़ दुर्ग

4. जैसलमेर दुर्ग

5. रणथम्भौर दुर्ग

6. चित्तौड़गढ़ दुर्ग

● ये दुर्ग जून, 2013 में नोमपेन्ह (कम्बोडिया) में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को साइट की सूची में शामिल किए गए।

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

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● प्रकार - धान्वन श्रेणी के दुर्ग को छोड़कर सभी श्रेणी का दुर्ग

● निर्माता - चित्रांगद मौर्य (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वीर विनोद’ के अनुसार)

● स्थित - मेसा पठार, गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम, चित्तौड़गढ़

● आकार - व्हेल मछली के समान।

● उपनाम - राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, चित्रकूट।

● इस दुर्ग की परिधि लगभग 13 किलोमीटर हैं।

● कहावत - गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।

● मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने मौर्य शासक मानमोरी को परास्त कर 734 ई. में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

● राजस्थान के दुर्गों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा, राज्य का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट तथा एकमात्र दुर्ग जिसमें कृषि की जाती है।

● यह दिल्ली-मालवा मार्ग पर अवस्थित है।

स्थापत्य :-

● अदबद्जी का मंदिर, रानी पद्मिनी का महल, गोरा-बादल महल, कालिका माता मंदिर, सूरज कुण्ड, समिद्धेश्वर मंदिर, जयमल-फत्ता (पत्ता) की छतरियाँ, तुलजा माता मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, सतबीस देवरी (जैन मंदिर), शृंगार चँवरी प्रासाद, लाखोटा की बारी, कल्ला राठौड़ की छतरी, रैदास की छतरी, रावत बाघसिंह का स्मारक एवं नवलखा भण्डार।

● सात प्रवेश द्वार - पाडन पोल (मुख्य व पहला प्रवेश द्वार), भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल, रामपोल।

● जलापूर्ति के स्रोत - रत्नेश्वर तालाब, कुम्भसागर, गोमुख झरना, हाथीकुण्ड, झालीबाव तालाब।

विजय स्तम्भ :-

● उपनाम - विष्णु स्तंभ, भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष

● निर्माण - महाराणा कुंभा द्वारा।

● प्रेरणा - बयाना के विष्णु स्तंभ से

● वास्तुकार - जैता, नापा, पोमा एवं पूंजा, भूमि, बलराज

● कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति की रचना - कवि अत्रि तथा बाद में महेश भट्ट

● जीर्णोद्धार - महाराणा स्वरूप सिंह

● 1437 ई. में ‘सारंगपुर युद्ध’ में महमूद खिलजी प्रथम को पराजित करने के उपलक्ष्य में विजयस्तम्भ का निर्माण 1440 ई. से 1448 ई. में करवाया गया था।

● यह 9 मंजिला इमारत है जो 30 फीट चौड़ी और 122 फीट ऊँची है। इसमें कुल 157 सीढ़ियाँ हैं।

● इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह शब्द लिखा है।

● इसके चारों ओर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की मूर्तियाँ बनी है।

सी. वी. वैद्य ने कहा - विष्णु स्तंभ

उपेंद्र नाथ डे ने कहा - विष्णु ध्वज

गोपीनाथ शर्मा ने कहा - लोक जीवन का रंगमंच

आर.पी. व्यास ने कहा - हिंदू प्रतिमा शास्त्र की अनुपम निधि

फर्ग्यूसन ने कहा - टार्जन टावर (इंग्लैंड)

जैन कीर्ति स्तम्भ :-

● 7 मंजिला

● निर्माणकर्ता - बघेरवाला जैन जीजा

● समय - 10वीं – 13वीं सदी

● समर्पित - भगवान आदिनाथ

तीन साके :-

(1) पहला साका –

● वर्ष - 1303 ई.

● आक्रमण - अलाउद्दीन खिलजी

● शासक - राणा रतनसिंह

● जौहर - पद्मिनी

● केसरिया – राणा रतनसिंह, गोरा-बादल का सम्बन्ध चित्तौड़गढ़ के पहले साके से है।

● नाम परिवर्तन - खिज्राबाद

(2) दूसरा साका –

● वर्ष - 1535 ई.

● आक्रमण - बहादुरशाह (गुजरात सुल्तान)

● शासक - विक्रमादित्य

● जौहर - कर्मावती

● केसरिया - देवलिया के रावत बाघसिंह

● बहादुरशाह ने अपने सेनापति रुमीखाँ को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा था।

● इस युद्ध में रानी कर्मावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजकर मदद माँगी थी।

(3) तीसरा साका –

● वर्ष - 1568 ई.

● आक्रमण - अकबर

● शासक - राणा उदयसिंह

● केसरिया - जयमल राठौड़ व फत्ता सिसोदिया

नोट : नवलखा बुर्ज (बनवीर द्वारा निर्मित लघु दुर्ग) इसी किले में निर्मित है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग

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● स्थित - मेवाड़ – मारवाड़ सीमा पर (राजसमन्द)

● श्रेणी - गिरि दुर्ग

● निर्माण - महाराणा कुम्भा ने मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेषों पर शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया था।

● शिल्पी - मंडन

● निर्माण काल - 1448-1458 ई.

● उपनाम - मेवाड़ की तीसरी आँख, कुम्भलमेर, मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी, मत्स्येन्द्र, एट्रूस्कन, कुंभलमेरु, कमलमीर आदि।

● प्रवेश द्वार - ओरठ पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरव पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल और गणेश पोल। (9 द्वार)

● यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से घिरा दुर्ग है।

● कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 किमी. लम्बे परकोटे से सुरक्षित है।

● कुम्भलगढ़ दुर्ग की सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं।

● कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जों व कंगूरों के विचारों से ‘एट्रूस्कन वास्तु’ से की है।

● इस दुर्ग में ही महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ था।

● कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध की तैयारी की थी।

स्थापत्य :-

● झालीबाव (बावड़ी), कुम्भस्वामी (विष्णु), नीलकण्ठ महादेव मंदिर, विष्णु मंदिर, मामादेव (महादेव) का कुंड, झाली रानी का मालिया, उड़ना राजकुमार (पृथ्वीराज राठौड़) की छतरी (12 खम्भों की छतरी) आदि।

● कटारगढ़ –

- इस दुर्ग में स्थित लघु दुर्ग जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान है।

- इसमें महाराणा प्रताप का जन्म हुआ तथा राणा कुम्भा के पुत्र ऊदा ने कुम्भा की हत्या की थी।

- कटारगढ़ में ही झाली रानी का मालिया महल बना हुआ है। इसे ‘बादल महल’ भी कहा जाता है।

- कटारगढ़ की ऊँचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि “यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।“

मेहरानगढ़ दुर्ग



● निर्माता - राव जोधा

● समय - 1459 ई. में

● नींव - करणी माता द्वारा

● चिड़ियाटूँक पहाड़ी पर निर्मित गिरि दुर्ग।

● आकृति - मोर (मयूर) के समान।

● अन्य नाम - मयूरध्वज, गढ़चिन्तामणि (कुण्डली के अनुसार नामकरण)।

● इस दुर्ग की नींव में राजिया (राजाराम) मेघवाल को जीवित चुना गया।

● रूडयार्ड किपलिंग ने कहा कि ‘यह दुर्ग देवताओं, परियों एवं फरिश्तों द्वारा निर्मित हैं।

● प्रवेश द्वार -

(i) जयपोल – उत्तर-पूर्व में। मानसिंह द्वारा 1808 ई. में निर्मित।

(ii) फतेहपोल – दक्षिण-पश्चिम में। अजीतसिंह द्वारा 1707 ई. में निर्मित।

प्रमुख स्थापत्य :-

(1) मामा-भान्जा या धन्ना भींवा की छतरी - यह 10 खम्भों की छतरी लोहा पोल के पास स्थित है।

(2) पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय

- स्थापित - महाराजा मानसिंह

(3) चामुण्डा माता मंदिर - इस मंदिर का निर्माण राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय करवाया था, जिसका जीर्णोद्धार महाराजा तख्तसिंह ने 1857 ई. में करवाया। वर्ष 2008 में चामुण्डा मंदिर में भगदड़ मच जाने से कई लोग मारे गए। इसकी जाँच हेतु जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया गया।

(4) नागणेची माता का मंदिर - यह राठौड़ वंश की कुलदेवी है।

(5) शृंगार चौकी – यहाँ पर राठौड़ वंश के राजाओं का राजतिलक किया जाता है।

(6) मोती महल – महाराजा सूरसिंह द्वारा निर्मित

(7) फूल महल – महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित

(8) रानीसर तालाब – राव जोधा की हाड़ी रानी जसमादे ने निर्माण करवाया।

(9) पदमसर – इसका निर्माण राव गांगा (1515 ई. – 1531 ई.) की रानी पद्मावती ने करवाया, जो मेवाड़ के राणा सांगा की पुत्री थी।

● अन्य स्थापत्य- मुरली मनोहर तथा आनंदघनजी के प्राचीन मंदिर, भूरे खाँ की मजार, वीर कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी, तख्तविलास, अजीत विलास, उम्मेद विलास आदि का भीतरी वैभव दर्शनीय है।

किले में तोपें :-

(1) किलकिला तोप - राजा अजीत सिंह द्वारा अहमदाबाद में बनवाई गई।

(2) शम्भूबाण तोप - राजा अभय सिंह ने सर बुलन्दखाँ से छीनी।

(3) गजनी खाँ तोप - 1607 ई. में गजसिंह ने जालोर विजय पर हासिल की।

(4) अन्य तोपें - कड़क, गजक, जमजमा, बिजली, बिच्छूबाण, नुसरत, गुब्बार, नागपली, मागवा, मीरक आदि।

सोनार किला

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● स्थित - त्रिकूट पहाड़ी पर, जैसलमेर में

● निर्माण – रावल जैसल द्वारा 1155 ई. में

● श्रेणी - धान्वन दुर्ग

● पूर्ण निर्माण - शालिवाहन द्वितीय

● उपनाम - सोनगढ़, गौहरारगढ़, त्रिकूटगढ़

● दूर से देखने पर यह किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज का आभास कराता है।

● प्रचलित कहावत – ‘घोड़ा कीजे काठ का पग कीजे पाषाण, बख्तर कीजे लोहे का तब पहुँचे जैसाण’।

● इस दुर्ग के सम्बन्ध में अबुल फजल की उक्ति –

‘यह ऐसा दुर्ग है, जहाँ पहुँचने के लिए पत्थर की टाँगें चाहिए।’

● सोनारगढ़ दुर्ग का निर्माण चूने का प्रयोग किए बिना पत्थरों को जोड़कर किया गया है।

स्थापत्य :-

● प्रवेश द्वार - अक्षय पोल (मुख्य प्रवेश द्वार), गणेश पोल, सूरज पोल, हवा पोल।

● शीश महल - दुर्ग में महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास।

● दुर्ग के भीतर जैसल कुआँ प्राचीन पेयजल स्रोत है।

● इस दुर्ग में 99 बुर्जें हैं।

● सर्वाधिक बुर्जों वाला दुर्ग है।

● गहरे पीले पत्थरों से निर्मित है।

● जैसलमेर दुर्ग विश्व का एकमात्र दुर्ग है, जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है।

● राज्य का दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट। (पहला – चित्तौड़ दुर्ग)

● कमरकोट - दुर्ग का घाघरानुमा दोहरा परकोटा। इसे स्थानीय लोग ‘पाड़ा’ भी कहते हैं।

● इस दुर्ग में हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बड़ा भंडार ‘जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार’ अवस्थित है।

● इस दुर्ग के भीतर ही घड़सीसर तालाब है।

‘ढाई साके’ के लिए प्रसिद्ध :-

(1) पहला साका - 1308 से 1312-13

● आक्रमण - अलाउद्दीन खिलजी

● शासक - मूलराज

(2) दूसरा साका

● आक्रमण - फिरोज तुगलक

● शासक - राव दूदा

(3) तीसरा अर्द्ध साका - 1550

● आक्रमण - कंधार के अमीर अली

● शासक - राव लूणकरण

● इस समय केसरिया हुआ लेकिन जौहर नहीं हुआ था।

प्रमुख तथ्य :-

● आदिनाथ जैन मंदिर - इस दुर्ग में स्थित सबसे प्राचीन जैन मंदिर।

● फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा ‘सोनार किला’ फिल्म का निर्माण किया गया।

● वर्ष 2009 में इस दुर्ग पर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।

● वर्ष 2009 में आए भूकम्प से इसमें दरारें पड़ गई हैं।

जूनागढ़ दुर्ग

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● श्रेणी - धान्वन दुर्ग, भूमि दुर्ग एवं पारिख दुर्ग

● निर्माण - महाराजा रायसिंह

● निर्माण समय – 1589 ई. से 1594 ई. तक

● आकृति - चतुष्कोण या चतुर्भुजाकृति।

● उपनाम - जमीन का जेवर, लालगढ़ दुर्ग, रातीघाटी का किला।

● अनूप महल – बीकानेर के राठौड़ शासकों का राजतिलक

● लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण ‘लालगढ़’ भी कहा जाता है।

● प्रवेश द्वार –

- बाहरी - कर्णपोल एवं चाँदपोल

- भीतरी - दौलत पोल, फतेह पोल, रतन पोल, सूरज पोल एवं ध्रुव पोल।

- सूरज पोल पर जैता द्वारा राजा रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण की गई।

- सूरज पोल के दोनों तरफ जयमल राठौड़ तथा फत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्तियाँ स्थापित की गई थी।

● इस दुर्ग की प्राचीर बहुत सुदृढ़ है तथा उनमें 37 बुर्जें बनी हुई हैं।

● राजपूत एवं मुगल स्थापत्य शैली का समन्वय है।

● यह दुर्ग वास्तव में आगरा के दुर्ग से मिलता-जुलता है।

● दर्शनीय स्थल – गज मंदिर, हर मंदिर, अनूप संग्रहालय, फूल महल, चन्द्र महल, लाल निवास, छत्र महल, गंगा निवास, दलेल निवास, रतन निवास आदि।

● दो कुएँ - रामसर एवं रानीसर

● 33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर – इस मंदिर में हेरंब गणपति (सिंह पर सवार गणपति) की प्रतिमा है।

● राजस्थान में पहली बार लिफ्ट इसी दुर्ग में लगाई थी।

● जूनागढ़ दुर्ग के सम्बन्ध में दीनानाथ दुबे की उक्ति –

‘दीवारों के भी कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती हैं।’

नागौर दुर्ग

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● श्रेणी - धान्वन दुर्ग व स्थल दुर्ग

● निर्माण - वि. सं. 1211 में कैमास (चौहान शासक सोमेश्वर का सामन्त)

● उपनाम - अहिच्छत्रपुर दुर्ग, नागदुर्ग

● 1570 ई. में अकबर अजमेर में ख्वाजा साहब की जियारत करने के बाद नागौर आया तथा यहाँ पर लगभग दो महीने रहा। उसने यहाँ एक तालाब खुदवाया, जिसका नाम शुक्र तालाब था।

● नागौर का दुर्ग वीर शिरोमणि अमरसिंह राठौड़ के शौर्य एवं स्वाभिमान के लिए प्रसिद्ध है।

● अकबर ने इस दुर्ग को बीकानेर शासक रायसिंह को सौंपा।

● नागौर के दुर्ग की मुख्य विशेषता यह है कि इसके बाहर से चलाए गए तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाए बिना ही ऊपर से निकल जाते हैं।

● स्थापत्य – वीर अमरसिंह राठौड़ की छतरी, ज्ञानी तालाब, वंशीवाला का मंदिर, वरमाया का मंदिर, अन्न गोदाम, दोहरा परकोटा

सिवाणा दुर्ग

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● श्रेणी - गिरि दुर्ग, सहाय दुर्ग, कूमट दुर्ग

● निर्माण - परमार शासक वीर नारायण पंवार

● समय - 954 ई. में (10वीं सदी)

● स्थान - हल्देश्वर पहाड़ी, सिवाणा कस्बा, बाड़मेर

● अन्य नाम - कुम्थाना, कूमट (कूमट झाड़ियों के कारण)

दो साके :-

(1) प्रथम साका –

● समय – 1308 ई.

● आक्रमण - अलाउद्दीन खिलजी

● शासक - सातलदेव सोनगरा

● नाम परिवर्तन - खैराबाद

(2) द्वितीय साका –

● आक्रमण – अकबर ने मोटा राजा उदयसिंह के नेतृत्व में

● शासक – कल्ला रायमलोत

● केसरिया - वीर कल्ला

● जौहर - हाड़ी रानी

प्रमुख तथ्य :-

● राव मालदेव ने गिरी सुमेल युद्ध (1544 ई.) के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किए जाने पर सिवाणा दुर्ग में आश्रय लिया था।

● जोधपुर शासकों की संकटकाल में शरणस्थली के रूप में प्रसिद्ध दुर्ग।

● ‘शेर-ए-राजस्थान’ नाम से विख्यात जयनारायण व्यास को राज्य के सिवाणा दुर्ग में बंदी बनाकर रखा गया।

● तालाब - भांडेलाव

रणथम्भौर दुर्ग

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● स्थित - सवाईमाधोपुर

● श्रेणी - गिरि व वन दुर्ग

● निर्माण - 8वीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा। (रणथम्मनदेव चौहान)

● यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

● अबुल फजल ने कहा – ‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।’

● वास्तविक नाम - रन्त:पुर अर्थात् रण की घाटी

● यह दुर्ग शिव पिंड पर रखे बिल्वपत्र की भाँति पहाड़ी शृंखला में खोया हुआ है।

स्थापत्य :-

● त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, जौरां-भौरां (अन्न भंडार), जोगी महल, बादल महल, हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी, नौलखा दरवाजा, रनिहाड़ा तालाब, पद्‌मला तालाब, 32 खम्भों की छतरी

● सुपारी महल (रणथम्भौर) में एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्जिद और गिरजाघर स्थित है।

● प्रवेश द्वार - नौलखा दरवाजा, हाथी पोल, गणेश पोल, सूरज पोल, त्रिपोलिया।

राजस्थान का पहला प्रमाणित साका :-

● वर्ष – 1301

● शासक - हम्मीर देव चौहान

● आक्रमण - अलाउद्दीन खिलजी

● जौहर - देवल (हम्मीर देव की पुत्री)

प्रमुख तथ्य :-

● पाशेब - दुर्ग में विशिष्ट चबूतरे।

● गरगच, मगरबी - दुर्ग से ज्वलनशील पदार्थ फेंकने के यंत्र।

● अर्शदा - दुर्ग से पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र।

● अकबर ने इस दुर्ग में ‘सिक्का ढालने की टकसाल’ स्थापित की।

● अकबर के शासनकाल में रणथम्भौर दुर्ग जगन्नाथ कच्छवाहा की जागीर में रहा। शाहजहाँ के समय यहाँ का अधिपति विट्ठलदास गौड़ था।

आमेर दुर्ग

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● अन्य नाम - आम्बेर, अम्बिकापुर, अम्बर, अम्बावती।

● स्थित - जयपुर नगर से उत्तर की ओर 11 किमी. दूर

● श्रेणी - गिरी दुर्ग

● अधिकार - कोकिलदेव ने 1036 ई. में यह दुर्ग आमेर के मीणा शासक भुट्‌टो से छीन लिया।

● पुनर्निर्माण - मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम

● हिन्दू-मुस्लिम शैली का समन्वित रूप।

● बिशप हेबर ने आमेर के महलों को क्रेमलिन के महलों से भी ज्यादा सुन्दर एवं अलंकृत बताया।

स्थापत्य :-

● शीशमहल, अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर, शिला माता मंदिर, दीवाने आम, दीवाने खास, दिलखुश महल, 24 रानियों का महल, बुखारा गार्डन, सुहाग मंदिर, मावठा तालाब, दौलाराम का बाग, केसर क्यारी बाग, सुख मंदिर, बालाबाई (महाराजा पृथ्वीराज की रानी) की साल।

● प्रवेश द्वार - जयपोल, सिंहपोल, गणेश पोल, सूरज पोल, चाँदपोल।

● जगत शिरोमणि मंदिर – इस मंदिर में प्रतिष्ठापित भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति लगी हुई है। यह मूर्ति आमेर के राजा मानसिंह-प्रथम द्वारा चित्तौड़ से लाई गई थी। इस मंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह की पत्नी कनकावती द्वारा अपने दिवंगत पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया गया था।

● 1707 ई. में मुगल बादशाह मुअज्जम (बहादुरशाह) ने आमेर दुर्ग पर अधिकार कर उसका नाम ‘मोमिनाबाद’ रखा।

● दीवान-ए-आम एवं दीवान-ए-खास का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था।

● दुर्ग में गणेश पोल के निर्माता मिर्जा राजा जयसिंह थे।

● गणेश पोल पर शीला देवी का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है।

जयगढ़ दुर्ग

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● श्रेणी - गिरि दुर्ग

● निर्माण - मिर्जा राजा जयसिंह

● परिवर्द्धनकर्ता - सवाई जयसिंह द्वितीय

● स्थान - चिल्ह का टीला (जयपुर)

● प्रवेश द्वार - डूँगर दरवाजा, अवनि दरवाजा एवं भैरू दरवाजा

● उपनाम - रहस्यमयी दुर्ग, संकटकालीन राजधानी, चिल्ह का टीला दुर्ग

● विजयगढ़ी – इसमें सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजयसिंह को कैद रखा तथा राजनीतिक बंदियों के लिए कैदखाने के रूप में काम आता है।

● दिया बुर्ज - सबसे ऊँचा बुर्ज (7 मंजिला)

● जयबाण - 1720 ई. में निर्मित एशिया की सबसे बड़ी तोप

● जयबाण तोप की मारक क्षमता - 32 किलोमीटर

● जयगढ़ दुर्ग भारत का एकमात्र दुर्ग है, जहाँ तोप ढालने का संयंत्र लगा हुआ है।

● अन्य तोपें - बादली, बजरंगबाण, मचवान

स्थापत्य :-

● पानी के टाँके, हथियारों का कारखाना, जलेब चौक, सुभट निवास, खिलबत निवास, लक्ष्मी निवास, ललित मंदिर, आराम मंदिर आदि हैं।

● कच्छवाहा राजाओं का राजकोष रखा हुआ था, श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल में गुप्त खजाने के लिए खुदाई करवाई गई थी।

● इसका निर्माण प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के निर्धारित मानकों के अनुसार किया गया है।

नाहरगढ़ दुर्ग

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● स्थित - जयपुर

● निर्माण - 1734 ई. में सवाई जयसिंह

● उपनाम - सुदर्शनगढ़, सुलक्षणगढ़

● नामकरण - नाहरसिंह भोमिया के नाम पर

● आकार - जयपुर के मुकुट के समान

● इस दुर्ग में महाराजा माधोसिंह प्रथम ने अपनी 9 पासवानों हेतु एक जैसे 9 महल बनवाए।

● 9 महल - सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनन्द प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चाँद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसन्त प्रकाश

● सवाई जगतसिंह की प्रेमिका रसकपूर कुछ समय तक इसी किले में कैद करके रखी गई थी।

गागरोन दुर्ग

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● श्रेणी - जल दुर्ग या औदुक दुर्ग

● निर्माण – 12वीं सदी में डोड राजा या बीजलदेव

● स्थान - सामेलणी (झालावाड़) में कालीसिन्ध-आहू नदियों के संगम पर

● अन्य नाम - धूलरगढ़ या डोडगढ़, गर्गराटपुर

● ‘चौहान कल्पद्रुम’ ग्रन्थ के अनुसार खींची राजवंश संस्थापक देवनसिंह (धारू) ने 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में डोड शासक बीजलदेव को परास्त कर इसका नाम गागरोन दुर्ग रखा।

स्थापत्य :-

● सूफी संत ‘मिट्‌ठे साहब की दरगाह’

● बुलन्द दरवाजा औरंगजेब द्वारा निर्मित भी स्थित है।

● संत पीपा की छतरी

● भगवान मधुसूदन का मंदिर

● कोटा रियासत के सिक्के ढालने की टकसाल

● जालिमकोट - कोटा के झाला जालिमसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटा।

दो साके :-

(1) प्रथम साका

● वर्ष - 1423

● आक्रमण - मांडू सुल्तान होशंगशाह

● शासक - अचलदास खींची

(2) द्वितीय साका

● वर्ष - 1444

● आक्रमण - महमूद खिलजी

● शासक - पाल्हणसी

● नाम परिवर्तन - मुस्तफाबाद

प्रमुख तथ्य :-

● अकबर ने गागरोन दुर्ग पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया।

● पृथ्वीराज ने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलि क्रिसन रुकमणि री’ गागरोन में रहकर लिखा।

● बादशाह जहाँगीर ने यह किला बूँदी के हाड़ा शासक राव रतन हाड़ा को जागीर में दे दिया।

● गीध कराई - गागरोन दुर्ग के पास स्थित ऊँची पहाड़ी।

● यह राज्य का एकमात्र दुर्ग है, जो बिना नींव के एक चट्टान पर सीधा खड़ा है।

मैगजीन किला

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● स्थित - अजमेर

● निर्माण - मुगल शासक अकबर द्वारा 1571-72 ई. में

● अन्य नाम - अकबर का दौलतखाना, मुगल किला

● यह मुगलों द्वारा मुस्लिम-हिन्दू दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया गया राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है।

● इसी दुर्ग में 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध की अन्तिम योजना बनाई गई थी।

● 10 जनवरी, 1616 को इंग्लैण्ड सम्राट जेम्स प्रथम के दूत टॉमस रो ने इसी दुर्ग में बादशाह जहाँगीर से मुलाकात की थी।

● 1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया।

● अकबर के पुत्र दानियाल तथा शाहजहाँ के पुत्र शहजादा शूजा का जन्म इसी किले में हुआ।

● इस दुर्ग में अंग्रेजों ने राजपूताना म्यूजियम बनवाया।

तारागढ़ दुर्ग (अजमेर)

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● श्रेणी - गिरि दुर्ग

● निर्माण - चौहान शासक अजयराज

● समय - 11वीं सदी में

● स्थान - तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी, अजमेर

● उपनाम - गढ़बीठली दुर्ग, अजयमेरु दुर्ग, राजपूताने की कुँजी, राजस्थान का जिब्राल्टर, अरावली का अरमान

● बिशप हैबर ने तारागढ़ दुर्ग को ‘राजस्थान का जिब्राल्टर’ की संज्ञा दी।

● हरविलास शारदा ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम दुर्ग माना है।

● प्रवेश द्वार - विजय पोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, भवानी पोल, हाथी पोल आदि।

● 14 बुर्ज - जिनमें घूँघट, गूगड़ी, फूटी बुर्ज, नक्कारची की बुर्ज, शृंगार चँवरी बुर्ज, पीपली बुर्ज, दोराई बुर्ज, फतेह बुर्ज, जानू नायक, इब्राहिम शहीद, बांदरा, इमली, खिड़की, आर-पार का अत्ता आदि प्रमुख हैं।

● तारागढ़ – मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज पृथ्वीराज ने अपनी रानी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा।

● प्रमुख इमारतें


भटनेर दुर्ग, हनुमानगढ़

आक्रमणकारी - महमूद गजनवी (1001 ई.)

- तैमूर (1398 ई.) समकालीन शासक – दुलचंद भाटी

- अकबर (1570 ई.)

रणथम्भौर दुर्ग, सवाईमाधोपुर

शासक – हम्मीर देव

आक्रमणकारी - अलाउद्दीन खिलजी (1301 ई.)

गागरोन दुर्ग, झालावाड़

शासक - अचलदास खींची

आक्रमणकारी - होशंगशाह, मांडू सुल्तान (1423 ई.)

शासक - पाल्हणसी

आक्रमणकारी - महमूद खिलजी प्रथम (1444 ई.)

चित्तौड़ दुर्ग, चित्तौड़गढ़

शासक - रावल रतनसिंह

आक्रमणकारी - अलाउद्दीन खिलजी (1303 ई.)

शासक – विक्रमादित्य

आक्रमणकारी – बहादुर शाह (1534 ई.)

शासक – उदयसिंह

आक्रमणकारी – अकबर (1567-68 ई.)

जैसलमेर दुर्ग, जैसलमेर

शासक - रावल मूलराज

आक्रमणकारी - अलाउद्दीन खिलजी (1312-13 ई.)

शासक - रावल दूदा

आक्रमणकारी - फिरोज तुगलक (1351-1388 ई.)

शासक – लूणकरण

आक्रमणकारी - अमीर अली, कंधार (1550 ई.)

सुवर्णगिरि दुर्ग, जालोर

शासक – कान्हड़देव

आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1311)

सिवाणा दुर्ग, बाड़मेर

शासक – सातलदेव

आक्रमणकारी - अलाउद्दीन खिलजी (1308 ई.)

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